लीची के लिए मशहूर बिहार में इस साल न केवल लीची का उत्पादन बढ़ने की संभावना है, बल्कि इस बार लीची ज्यादा रसीली भी होगी। पिछले एक सप्ताह में बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में हुई बारिश और चल रही पुरवा हवा ने न केवल लीची के फलों में लाली ला दी है, बल्कि उसकी मिठास की उम्मीदों को भी बढ़ा दिया है। लीची के जानकार कहते हैं कि इस वर्ष लीची की पैदावार अच्छी होगी। राष्ट्रीय लीची शोध संस्थान के निदेशक विशालनाथ ने बताया कि राज्य में इस वर्ष लीची की उत्पादन में वृद्धि की संभावना नजर आ रही है। वैसे तो राज्य में शाही, चाइना, लौंगिया, बेखना सहित कई प्रकार की लीची का उत्पादन किया जाता है, लेकिन यहां शाही और चाइना लीची का उत्पादन सर्वाधिक होता है। वे कहते हैं कि ये दोनों प्रकार की लीची, लीची की सर्वश्रेष्ठ क्वालिटी मानी जाती है। शाही और चाइना लीची में जितना रस होता है वह अन्य लीची में नहीं होता। विशालनाथ कहते हैं कि इस वर्ष मई में हुई बारिश लीची के लिए काफी फायदेमंद साबित हुई है। बारिश के कारण न केवल लीची के रंग और आकर में वृद्धि हुई, बल्कि लीची के रसों में भी वृद्धि तय है। उन्होंने कहा, पिछले एक सप्ताह के दौरान तापमान में कमी होने से लीची में लाली आ रही है। कई बागों में लीची अभी भी हरी है, लेकिन आकार और मिठास बेहतर होने की उम्मीद है। विशालनाथ ने बताया, लीची पकने में अब 10 से 12 दिन का समय लगेगा। उसका बीज पूरी तरह विकसित हो गया है। पुरवा हवाओं के बीच मिठास धीरे-धीरे आती है। राज्य में लीची की उत्पादकता को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने वर्ष 2001 में मुजफ्फरपुर में लीची के लिए एक राष्ट्रीय शोध संस्थान (एनआरसी) की स्थापना की। राज्य में वैसे तो कई जिलों में लीची की खेती की जाती है, मगर मुजफ्फरपुर लीची उत्पादन का मुख्य केंद्र है। लीची के बाग मालिकों का कहना है कि फलों का आकार भी पिछले वर्ष की तुलना में ठीक है। मार्च और अप्रैल में पछुआ हवा चली थी तथा तापमान 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। तापमान के अधिक होने के कारण लीची की पैदावार कमजोर होने की आशंका थी, लेकिन पिछले दिनों हुई बारिश से जमीन में नमी आ गई है। देश में लीची का उत्पादन मुख्य तौर पर बिहार, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश में लगभग 76,000 हेक्टेयर भूमि पर होता है। इसके अलावा पंजाब, त्रिपुरा, असम, ओड़िशा और झारखंड में भी इसका उत्पादन होता है, मगर देश के कुल लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत से ज्यादा है। बिहार में कुल 30,600 हेक्टेयर भूमि में लीची की खेती की जाती है। निदेशक कहते हैं कि इस वर्ष बिहार में लीची का उत्पादन तीन लाख टन से ज्यादा होने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि 20 मई से लीची की तुड़ाई का काम शुरू होने वाला है। वे कहते हैं कि लीची की तुड़ाई का काम बीच जून तक चलेगा। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक एसडी पांडेय ने बताया कि पिछले साल दिसंबर से इस वर्ष मई के पिछले सप्ताह तक बारिश नहीं होने से प्रदेश की 15 से 20 प्रतिशत लीची की फसल बर्बाद हो गई। उन्होंने बताया कि लीची के फल का वजन जो कि आमतौर पर 23 से 25 ग्राम होता है, घटकर 17 से 18 ग्राम हो गया, लेकिन हाल में हुई बारिश से इस फसल को बहुत लाभ पहुंचा है। साथ ही बर्बाद हो रही इस फसल में नई जान आ गई है। पांडेय ने बताया कि मनसून के पूर्व हुई बारिश ने बिहार की विशिष्ट शाही लीची जो स्वाद में सबसे बेहतर मानी जाती है, की करीब 70 फीसदी फसल को बर्बाद होने से बचा लिया है।
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