तमिलनाडु में एआईएडीएमके ने दूसरी बार लगातार जीत पाकर इतिहास रचा है। गौरतलब है कि तमिलानडु में ये चलन काफी समय से चला आ रहा थाद कि एक बार राज्य में डीएमके की सरकार बनी तो दुसरी बार एआईएडीएमके की सरकार। काबिले गौर यह भी है कि यह पहली बार था जब पार्टी ने कुल 234 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थो। हालांकि इसमें कुछ सहयोगी दल के प्रत्याशी भी थे पर सभी ने एआईएडीएमके के चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ा। इस जीत का श्रेय केवल जयललिता को नहीं बल्कि उनकी सरकार के दौरान किए गए जनकल्याणकारी कार्य और घोषणापत्र में किए गए वादों को जाता है। हालांकि इस बार एआईएडीएमके को पिछली बार की अपेक्षा कम सीटें मिलीं है। इस जीत का बड़ा श्रेय तमिलनाडु में प्रमुख दलों की प्रतिद्वंदी रही पार्टियों को भी जाता है। मतों के बिखराव के कारण इसका पूरा फायदा एआईएडीएमके को हुआ। यह पहली बार था जब राज्य के विधानसभा चुनाव में दो अधिक मुख्यमंत्री प्रत्याशी थे। डीएमके की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार कलैंजर करुणानिधि तो एआईएडीएमके की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार जे. जयललिता थी। वहीं रामदास की पीएमके की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदारवार अन्बुमणी रामदास और पीडब्लुएफ गठबंधन की ओर से डीएमडीके संस्थापक विजयकांत मुख्यमंत्री उम्मीदवार थे। इस बार के चुनाव में जहां डीएमके के साथ कांग्रेस और कई अन्य पार्टियों ने चुनाव लड़ा तो वहीं एआईएडीएमके कुछ सर्मथकों दलों के साथ चुनावी संग्राम में उतरी। वही भाजपा ने किसी प्रमुख क्षेत्रिय पार्टी के बजाय इस बार आईजेके व अन्य घटक दलों के साथ 188 सीटों से अपने प्रत्याशी खड़े किए। पीडबलुएफ गठबंधन की ओर से प्रत्याशी इस बार के विधानसभा में उतारे गए थे। तमिलनाडु का राजनैतिक इतिहास:- तमिलनाडु में आजादी के बाद शुरूआती दिनों में देश के अन्य प्रदेशों की तरह यहां भी कांग्रेस का शासन था जिसपर वर्ष 1967 में डीएमके ने कब्जा जमाया। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने कांग्रेस का पठखनी दे सत्ता अपने हाथों में ली। उस चुनाव के बाद मुख्यमंत्री डीएमके के संस्थापक सीएन अन्नादुरै को बनाया गया। उसके बाद वर्ष 1971 में भी डीएमके की सरकार बनी और उस वक्त मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि बने। उसके बाद डीएमके में दो फार हुआ जिसके बाद डीएमके से टुटकर एआईएडीएमके बनी, जिसके संस्थापक एमजी रामचंद्रन थे। एमजी रामाचंद्रन वर्ष 1977 में पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने उसके बाद वह वर्ष 1980 और 1984 तक मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद फिर वर्ष 1989 में एक बार फिर से डीएमके की सरकार बनी। उसके बाद से वर्ष 2011 तक डीएमके और एआईएडीएमके की सरकार हर पांच के साल बदली और बनती रही। जिसके बाद वर्ष 2016 में एआईएडीएमके ने इतिहास को न दोहराते हुए अलग इतिहास की रच डाला। चेन्नई में डीएमके और राज्य के अन्य हिस्सों में का एआईएडीएमके रहा दबदवा:- तमिलनाडु के 15वीं विधानसभा चुनाव में चेन्र्नई के विधानसभा क्षेत्रों में जहां डीएमके पार्टी का दबदबा रहा तो राज्य के अन्य हिस्सों मेें अपने प्रभाव को भुनाने में असफल रही जिसका फायदा एआईएडीएमके पार्टी को मिला। चेन्नई के 16 विधानसभा सीटों में से 9 डीएमके के खाते में आई तो 7 एआईएडीएमके के खाते में गई। जबकि पिछली बार चेन्नई से एआईएडीएमके को 11 सीटें मिली थी। 2जी मामले और भ्रष्ट्राचार के अन्य आरोपों ने इस बार भी डीएमके पार्टी का दामन नहीं छोड़ा। राज्य में चुनाव प्रचार में हर प्रतिद्वंदी पार्टियों ने डीएमके पर भ्रष्ट्राचार और परिवारवाद के आरोप लगाए जिससे वह उबर नहीं पाई। पार्टी की अंदरुनी कलह भी हार का एक प्रमुख कारण है। चेन्नई में डीएमके को सैदापेट, अन्नानगर, चेपॉक, एगमोर, हार्बर आदि जगहों पर डीएमके प्रत्याशी विजयी रहें। गौरतलब है कि करुणानिधि 13वीं बार लगातार चुनाव में जीत हांसिल की। वहीं अम्बत्तूर, आंकबुर, आरिनी, आराकोणम, आवडी, चिदंबरम, कोयम्बत्तूर, कडलुर, दिंदिगुल, होसुर, कल्लाकुरिचि, मदुरै, मेटुर ना मकल आदि कई जगहों पर एआईएडीएमके को जीत मिली।
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