न्यायपालिका का कार्यपालिका व विधायिका पर हावी होने का प्रयास : गोयल

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नई दिल्ली : राष्ट्रवादी शिवसेना के अध्यक्ष एवं यूनाईटेड हिन्दू फ्रंट के राष्ट्रीय महासचिव श्री जय भगवान गोयल ने राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी को पत्र लिखकर कहा है कि सरकार के तीनों अंगों की स्वतंत्रता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए सभी को अपने कार्य की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए।
पत्र में श्री गोयल ने कहा कि आजकल न्यायपालिका और कार्यपालिका में परस्पर खीचंतान की खबरें जनसाधारण का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। देष के वित्तमंत्री को संसद मे कहना पड़ा कि कार्यपालिका के पास बजट पास करने के अलावा कोई कार्य नहीं बचेगा। न्यायापालिका हर कार्य में हस्तक्षेप कर रही है। देश के रक्षामंत्री ने भी यहीं कहा कि न्यायधीषों की कई टिप्पणीयां बेमतलब होती हैं। एक अन्य केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी को भी प्रधान न्यायधीष श्री टी.एस.ठाकुर के उस वक्तव्य का प्रतिकार करना पड़ा जिसमें उन्होंने कहा था कि जब सरकार फेल हो जाती है तो न्यायपालिका हस्तक्षेप करती है।
पत्र में श्री गोयल ने कहा है कि सर्वोच्य  न्यायालय मानने को तैयार नहीं कि विधायिका और कार्यपालिका के कामों मे दखलान्दाजी, हल्की टिप्पणीयां और खुद अपनी नियुक्ति करने जैसे अधिकार ले लेने में कुछ भी गलत है। उन्होंने कहा कि वास्तव में कतिपय औसत नेताओं के अज्ञान और राजनीतिक दलों की परस्पर खीचंतान के विधायिका की स्थिति कमजोर हुई है जिसका लाभ अफसरशाही और न्यायपालिका उठा रही हैं। न्यायधीषों ने खुद अपनी नियुक्ति अनुषंसित और तो और रिटायरमेंट के बाद फिर तरह-तरह  के विविध आयोगों, अधिकारणों से पुर्ननियुक्त होने करने की ताकत अपने हाथ मे झटक ली है,  इतनी ताकत जुटा लेने के बाद भी न्यायपालिका ने अपने अन्दर भ्रश्टाचार, भाई-भतीजावाद, विलम्ब, सुनवाई मामलों के चयन मे पक्षपात आदि दूर करने का कोई उपाय नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय में किसी किसी मामले को आठ-आठ साल तक छुआ नहीं जाता, जबकि किसी आंतकी पर बार-बार पुर्नविचार, किसी बड़ी कम्पनी, नेता या राजनीतिक विवाद पर रोजमर्रा विशयों में नगरपालिका अधिकारी जैसे काम करते देखा गया है।
श्री गोयल ने पत्र में अनेक उदाहरण इस सन्दर्भ में दिए हैं।
उन्होंने पत्र में न्यायपालिका को चुस्त, निश्पक्ष रखने के लिए न्यायिक षिक्षा से लेकर नियुक्ति तक सभी पहलुओं पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने की आवष्यकता पर बल दिया। उन्होंने पत्र मे आगे कहा कि सेवानिवृति के बाद षक्ति एवं सुविधा वाले पदों पर न्यायधीषों की पुनः नियुक्ति का चलन भी खत्म करना जरूरी है। सरकार के तीनों अंगों कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका का एक दूसरे के कार्य मे हस्तक्षेप करना मान्य नहीं माना जा सकता।
पत्र की प्रति प्रधानमंत्री श्री नरेद्र मोदी व केन्द्रीय कानून मंत्री श्री रवि षंकर प्रसाद को भी भेजी गई है।
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