नई दिल्ली (ब्यूरो)। दिल्ली का चहुंमुखी विकास का दावा करने वाली दिल्ली सरकार विकास मद में सभी विभागों में भारी धन होने के बावजूद पिछले छह महीने में विकास कार्यों पर सिर्फ 22 प्रतिशत रकम ही खर्च कर पाई है। विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च करके यह सरकार दिल्ली की जनता को सिर्फ गुमराह कर रही है। नेता प्रतिपक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने विभागवार विकास कार्यों में सरकार द्वारा खर्च की गई रकम का ब्यौरा देते हुए बताया कि 6 माह बीतने के बाद भी दिल्ली सरकार बिजली पर सिर्फ 3.33 प्रतिशत रकम खर्च की है जबकि बिजली विभाग के पास 386 करोड़ रुपए का भारी विकास मद है।
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इसमें से सिर्फ 12.86 करोड़ रुपए ही सरकार ने खर्च किए हैं। जलापूर्ति और स्वच्छता विभाग को 1976 करोड़ रुपए के बजट में से सिर्फ 17.24 प्रतिशत राशि ही खर्च हो पाई है। सरकार ने गरीबों को सस्ते आवास देने का वायदा किया था। बजट में आवास के लिए 300 करोड़ रुपए के बजट में केवल 14 करोड़ रुपए ही खर्च हो पाए हैं। गुप्ता ने बताया कि स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 2725 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे लेकिन मुख्यमंत्री के अति नजदीकी स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन अभी तक सिर्फ 24 प्रतिशत धन ही खर्च कर पाए हैं।
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उल्लेखनीय है कि इस बार दिल्ली के लाखों लोग चिकनगुनिया, डेंगू, मलेरिया आदि बीमरियों से ग्रस्त थे। जनता को स्वास्थ्य सुविधाएं न कराने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सरकार को कई बार फटकार लगाई। इसी तरह से सामान्य शिक्षा विभाग के पास 4155 करोड़ रूपए का बजट आवंटन था लेकिन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में केजरीवाल सरकार सामान्य शिक्षा पर सिर्फ 1006 करोड़ रूपए ही खर्च कर पाई है।
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सरकारी स्कूलों में प्रवेश न मिल पाने के कारण राजधानी के लगभग तीन लाख गरीब बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार गरीबों और वंचित तबके के विकास का नारा देकर सत्ता में आई थी। अनुसूचित जातिए जनजातिए पिछड़ा वर्ग विभाग के पास इनके विकास के लिए 380 करोड़ रूपये का बजट था लेकिन सरकार ने सिर्फ 5 प्रतिशत धन ही खर्च किया है। इससे जाहिर होता है कि यह सरकार कितनी गरीब विरोधी है।
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उन्होंने बताया कि कुपोषण राजधानी की बड़ी समस्या है। गरीब तबकों के पोषण के लिए 377 करोड़ रूपए आवंटित थे लेकिन सरकार ने इसमें से सिर्फ 12 प्रतिशत रकम ही खर्च की है। श्रममंत्री गोपाल राय ने श्रमिकों के हित के बड़े-बड़े दावे करके विज्ञापनों पर करोड़ों रूपए खर्च किए, लेकिन सच्चाई यह है कि इस विभाग के पास 166 करोड़ रूपए का बजट है जिसमें से सिर्फ 7 करोड़ रूपए खर्च किए हैं।