मुजफ्फरपुर । एक समय था जब पथिक यहां रुककर प्यास बुझाते थे। दो पल आराम कर अपनी थकान मिटाते थे। आसपास के लोग यहां सुबह-शाम टहलने आते थे। जब पानी में अपनी परछाई दिखती थी तो मन झूम उठता था। घाटों पर लगने वाले मेले प्राचीनता की धुन सुनाते थे। बुजुर्गों की यहां चौपाल सजती थी। वे परिवार से लेकर समाज एवं सड़क से लेकर सरकार तक की चर्चा करते थे। लेकिन अब यहां कोई खड़ा भी नहीं रहना चाहता है। यह हाल है शहर में स्थित पड़ाव पोखर का।
शहर के दक्षिणी भाग में स्थित पड़ाव पोखर में कल तक पानी शीशे की तरह चमकता था, आज वह काला हो गया है। आधुनिकता का दंभ भरने वाले समाज ने सौ साल के इतिहास को काला कर लिया। शहर की इस विरासत को अंतिम सांस लेने पर मजबूर कर दिया। पोखर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। हर-आने जाने वालों को आशा भरी नजरों से देख रहा है, उम्मीद जिंदा है कि कोई तो आएगा जो पोखर की पीड़ा को समझ इसके उद्धार का बीड़ा उठाएगा।