नई दिल्ली। इस दिल्ली नगर निगम चुनाव में शकूरपुर (सुरक्षित) वार्ड नं 69 का रण बड़ा ही दिलचस्प होने जा रहा है। चार अलग—अलग राजनीतिक दलों के प्रत्याशी एक—दूसरे को धूल चटाने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। सभी की अपनी—अपनी करनी व कथनी है। दो नए प्रत्याशी हैं, तो दो पुराने दल के उम्मीदवार। दो युवा है, तो दो मध्यम आयु वर्ग के, लेकिन जीत का जोश लगभग सब में भरपूर है।
चुनावी तैयारी की बात करें, तो चूंकि आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवार सबसे पहले घोषित किये, इसलिए इनके उम्मीदवार अशोक गंगवाल ने तैयारी भी पहले शुरू कर दी। इसके बाद आम आदमी पार्र्टी से टिकट ना मिलने से नाराज संदीप मेंडवाल ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ने का मन बनाया और अपना चुनाव प्रचार शुरू किया। लेकिन कुछ दिनों बाद मेहनती संदीप पर स्वराज इंडिया की नजर पड़ी और नवगठित पार्टी ने इन्हें यहां से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। फिर बसपा के रामपाल बैरवा सामने आए, तो सबसे आखिर में कांग्रेस व भाजपा ने क्रमशः हेमराज बैमाड़ एवं अनूप पवांर को मैदान में उतारा।
3 अप्रैल को नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद सभी प्रत्याशियों ने अपने स्तर पर मतदाताओं से मिलना व उन्हें लुभाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस व भाजपा ने जहां अभी अपने चुनाव अभियान की शुरुआत ही की है, वही आम आदमी पार्टी व स्वराज इंडिया इस मामले में काफी आगे निकल चुके हैं। ‘आप’ के अशोक गंगवाल और स्वराज इंडिया से संदीप मेंडवाल तो अपने समर्थन में बाईक रैली व कई सभाओं का आयोजन भी कर चुके हैं, जो आज तक जारी है। दोनों की रैलियों व सभाओं में लोगों की भारी भीड़ जुटकर उनका समर्थन करती हुई देखी जा रही है। यहां दिलचस्प है स्वराज इंडिया प्रत्याशी के मात्र स्वयं के बूते पूरे चुनाव प्रबंधन को संभालना जबकि ‘आप’ प्रत्याशी के सर पर स्थानीय विधायक जितेंद्र सिंह तोमर का हाथ है, जो अशोक गंगवाल के मेंटर की भूमिका में हैं। जबकि यहां कांग्रेस, भाजपा और बसपा के प्रत्याशियों की तरफ से अभी तक उनके कोई वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी खुलकर सामने नहीं आए हैं, जिस कारण वे स्वयं को अकेला महसूस कर रहे हैं। दूसरी तरफ नवगठित पार्टी होने का कारण स्वराज इंडिया का संगठन अभी निर्मित नहीं हो पाया है, जिस कारण स्वराज प्रत्याशी संदीप स्वयं ही अपने समर्थकों के सहयोग से सभी भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे हैं, जो काबिलेतारीफ है।
इस प्रकार शकूरपुर (सुरक्षित) वार्ड से अभी तक के निष्कर्ष में गंगवाल बनाम मेंडवाल के साथ ही काग्रेस के हमेराज बैमाड़ व उसके बाद बसपा के रामपाल बैरवा का मुकाबला ही नजर आ रहा है। जबकि भाजपा इस रण में कहीं नजर नहीं आ रही है। भाजपा यहां सबसे पिछड़ गयी है। गौर करेें तो कांग्रेस के जहां अपने पूर्व पराजित उम्मीदवार हेमराज बैमाड़ पर ही दांव लगाया है, जो भरोसे लायक साबित भी हो रहे हैं। वहीं भाजपा ने युवा छात्र अनुप पंवार को मैदान में उतारा है, जो बिलकुल ही फीके साबित हो रहे हैं। और जहां तक बसपा की बात है, तो इनके उम्मीदवार रामपाल बैरवा अपने बैरवा समाज के वोटो के बल पर अपना दावा मजबूत करते दिख रहे है।
इस प्रकार अभी तक शकूरपुर की लड़ाई विशुद्ध रूप से ‘आप’, स्वराज, बसपा व कांग्रेस, इन्हीं चारों के इर्द—गिर्द घूम रही है। जहां कमजोर और पीछे अगर कोई है, तो वह है भाजपा, जिसके उम्मीदवार अनूप पवांर नौसिखया एवं अनुभवहीन साबित हो रहे हैं।