जनमत की पुकार (9990475033)
नई दिल्ली। श्री अग्रसेन इंटरनेशनल हॉस्पीटल के संभावित चुनाव के संबंध में पिछले कुछ दिनों से दो गुटों में आपसी खींचतान चल रही है, जिस कारण चुनाव प्रक्रिया अधर में है। यह बातें हॉस्पीटल ट्रस्ट में कंट्रोल बोर्ड के सदस्य ध्रुव कुमार गोयल पैट्रर्न ट्रस्टी ने जनमत की पुकार समाचार पत्र से बातचीत के दौरान कहीं। उन्होंने आगे कहा कि 27 सितम्बर को मतदान प्रक्रिया के दौरान जो कुछ हुआ वह जगजाहिर है। किसकी गलती थी, किसकी नहीं, यह भी सब जानते हैं। 27 सितम्बर की घटना के बाद कोर्ट द्वारा स्टे की प्रक्रिया के चलते ईजीएम न हो पाना, दो चुनाव पर्यवेक्षकों की नियुक्ति व चुनाव की 29 नवम्बर कोर्ट द्वारा तारीख निश्चित किए जाने के बावजूद समाज के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा चुनाव न होने देने का प्रयास करना और लगातार बीच का रास्ता निकालना क्या तर्कसंगत है?
अगर ऐसा होता है तो भविष्य में कभी भी चुनाव न हों और यह संस्था कुछ लोगों की व्यक्तिगत संस्था बनकर रह जाए तो कोई आश्चर्य नहीं?
जो भी ट्रस्टी भाई चुनाव में भागीदारी नहीं करते वह अपने विचार या मत, क्या किसी को नहीं दे सकते?
श्री गोयल ने अखबार से बातचीत करते हुए आगे बताया कि 23 अक्टूबर, 2015 को वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित लोगों द्वारा फैसला किया जाना कि पर्ची द्वारा इलेक्शन हों, दोनों ग्रुप अपनेख्नअपने उम्मीदवारों का चयन कर संस्था के सामने रखें। क्या यह सभी ट्रस्टियों को मान्य होगा?
क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि ट्रस्टियों को मत देने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है और जितनी भी ये सामाजिक संस्थाएं हैं वे कुछ लोगों के नाम पर दी जाएं और उनके सारे अधिकार उनके विवेक पर छोड़ दिए जाएं, फिर यह चुनाव का दिखावा क्यों?
करोड़ों रुपये चुनाव में खर्च करने के बाद आपस में रिश्तेदार को लड़ाकर मनमुटाव पैदा करना और उसके पश्चात चुनाव के बजाए पर्ची द्वारा इलेक्शन की प्रक्रिया की वकालत करना कहां तक उचित है?
श्री गोयल ने आगे बताया कि वे संस्था से नर सेवा—नारायण सेवा के उद्देश्य से जुड़ा थे न कि राजनीतिक खींचतान के लिए। उनका मानना है कि यदि सभी का स्पष्ट उद्देश्य समाजसेवा है तो फिर यह राजनीतिक घमासान क्यों?
उन्होंने आगे कहा कि एक ऐसा फार्मूला तैयार हो कि सभी को सेवा का मौका मिले यानी एक व्यक्ति को एक पद एक ही बार दिया जाए। दुबारा चुनाव लड़ने की अनुमति ही न हो।
पदाधिकारियों द्वारा समझौते पर समझौते पेश किए जा रहे हैं लेकिन ज्यादा से ज्यादा ट्रस्टियों को इन समझौतों में व्यावहारिकता नजर नहीं आ रही है। कह सकते हैं कि अव्यावहारिकता की पूरी—पूरी आशंका दिखाई दे रही है। ऐसे में ट्रस्टी इन समझौतों को क्यों मानेंगे?
पिछले चुनावों में कई तरह की अनियमितता सामने आई। उससे मतदाताओं के मन में एक तरह की खिन्नता आ गई और यह शंका व्यक्त की गई कि हॉस्पिटल का प्रबंधकीय कार्य क्या नई टीम आने के बाद सुचारू रूप से चल सकेगा। पिछले चुनाव की अनियमितताएं एक बार फिर न दोहराई जाएं। क्या जिम्मेदार पदाधिकारी इसकी कोई गारन्टी देंगे?