नई दिल्ली। दिल्ली के पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा है कि सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले 1984 के दंगों के दौरान तत्कालीन सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने में नाकाम साबित हुई थी। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र और पूर्वी दिल्ली के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने बुधवार रात पूर्व पत्रकार निलंजन मुखोपाध्याय की सिख विरोधी दंगों से संबंधित किताब ‘अनटोल्ड एगोनी आफ 1984’ के विमोचन के मौके पर यह बात कही। संदीप ने कहा कि यह शायद आजाद भारत के इतिहास में पहला मौका था जब सरकार लोगों को बचाने के अपने कर्तव्य को निभाने में विफल साबित हुई थी। उन्होंने कहा, यह शायद पहली बार हुआ था कि राज्य के गौरव, उसके अधिकार की बलि दे दी गई थी। सरकार को लोगों का रक्षक माना जाता है… शायद आजाद भारत में पहली बार सरकार अपनी यह भूमिका निभाने में नाकाम रही। ज्ञात रहे कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों में बड़ी संख्या में सिखों की हत्या की गई थी। विमोचन समारोह में मौजूद लेखिका उर्वशी रौतेला ने कहा, यह लोगों की जिम्मेदारी है कि वे इंसाफ के लिए संघर्ष को जिंदा रखें। इंसाफ मांगने के मामले में कभी देर जैसी कोई बात नहीं होती। हमें अपनी लेखनी से इन यादों को जिंदा रखना होगा और इन्हें अगली पीढ़ी तक पहुंचाना होगा। वर्ष 1984 के दंगों के पीड़ित आज भी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं। भाजपा नेता सुधांशु मित्तल ने इस मौके पर कहा, सशस्त्र बलों और सरकार की नाकामी के साथ साथ हमें शहर के लोगों ने भी शर्मिदा किया था। उन्होंने पूछा कि गुजरात दंगों की ही तरह कांग्रेस सरकार ने 84 के दंगों के बाद विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन क्यों नहीं किया था?
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