अंदर की बात
नई दिल्ली। (जनमत की पुकार) दिल्ली नगर निगम के चुनाव जैसे—जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के निगम पार्षद व मंडल के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। निगम पार्षद सत्ता के मद में चूर हैं और मंडल के कार्यकर्ता व पदाधिकारी जनता के कामों के लिए दर—दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं। स्थिति का आलम यह है कि पार्षद महोदय, मंडल पदाधिकारियों का काम अटकने पर पदाधिकारियों व अधिकारियों के बीच पैसे की सौदेबाजी काम करा रहे हैं। कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों में निगम पार्षदों की कार्य श्ौली को लेकर जबरदस्त रोष व्याप्त है। भाजपा कार्यकर्ताओं में रोष है कि प्रदेश नेतृत्व का कमजोर होना पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है। चुनाव सिर पर आ गए हैं और निगम पार्षदों को न तो जनता और न ही भाजपा कार्याकर्ता की सुध है। एक कार्यकर्ता तो अपने वार्ड के निगम पार्षद से इतना खफा हैं कि उन्होंने अपने पार्षद पर भ्रष्टाचार का आरोप तक लगा चुके हैं।