जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने विश्वविद्यालयों में हो रहे कथित हमलों की तुलना गुजरात दंगों से करते हुए आरोप लगाया कि दोनों को सरकारी मशीनरी के समर्थन से अंजाम तक पहुंचाया गया था। इसके बावजूद भी फासीवाद और आपातकाल में एक बड़ा फर्क है। देशद्रोह का आरोप झेल रहे कन्हैया का कहना था कि गुजरात में 2002 में हुए दंगों और 1984 के सिख विरोधी दंगों में फर्क है। गुजरात के दंगे जहां सरकारी मशीनरी की मदद से किए गए थे वहीं दिल्ली के सिख विरोधी दंगे भीड़ के उन्माद में हुए थे। उसने यह बातें दिवंगत इतिहासकार बिपिन चन्द्रा की जयंती पर जश्न-ए-आजादी कार्यक्रम के तहत आयोजित वॉइस ऑफ आजादी में जमा लोगों को संबोधित करते हुए कहीं। कन्हैया ने कहा कि आपातकाल और फासीवाद में फर्क है। आपातकाल के दौरान सिर्फ एक पार्टी के गुंडे गुंडागर्दी में थे लेकिन इसमें (फासीवाद) पूरी सरकारी मशीनरी ही गुंडागर्दी करती है। 2002 के दंगों और 1984 के सिख विरोधी दंगों में फर्क है। भीड़ द्वारा आम आदमी की हत्या किए जाने और सरकारी मशीनरी के माध्यम से नरसंहार करने में मूलभूत फर्क है। इसलिए, आज हमारे सामने साम्प्रदायिक फासीवाद का खतरा है। यूनिवर्सिटी पर हमले किए जा रहे हैं, क्योंकि हिटलर की भांति मोदी जी को भारत में बुद्धिजीवियों का समर्थन प्राप्त नहीं है। कोई बुद्धिजीवी मोदी सरकार का बचाव नहीं कर रहा। उसने कहा वर्तमान में यह इस्लामोफोबिया का दौर है। आतंकवाद और आतंकवादी शब्द को तो छोड़ ही दें। जैसे ही ये शब्द आपके जेहन में आते हैं, किसी मुसलमान का चेहरा आपके दिमाग में आता है। यही इस्लामोफोबिया है। इस दौरान कन्हैया के साथ देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार हुए उमर खालिद और अनिर्बन भट्टाचार्य ने भी अपने विचार रखे।
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