चीनी उत्पाद के विरोध में हाथ से बनीं राखियां

  • जनमत की पुकार ब्यूरो

नई दिल्ली। रक्षा बंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट बंधन को दर्शाने वाला है, जिसकी डोर रेशम के धागे से बंधी हुई है। बाजार में मिलने वाले चीन की बनी राखी को अब महिलाएं पसंद नहीं करतीं और उसे आस्था के अनुरूप भी नहीं मानती हैं। यही वजह है कि अब कई महिलाएं भाई की कलाई को सजाने के लिए स्वयं ही राखी बनाने में यकीन रखती हैं। इसके लिए स्थानीय स्तर पर कई संस्थाएं भी इसके लिए बहनों को प्रेरित कर रही हैं। उत्तरी बाहरी दिल्ली के कई इलाकों में ऐसी संस्थाएं हैं जो महिलाओं को हाथों से राखी बनाने के लिए प्रेरित करने के साथ ही उन्हे प्रशिक्षण दे रही हैं। युवतियां और महिलाएं भी इसको लेकर काफी उत्साहित हैं, क्योंकि उनका भी मानना है कि स्वयं राखी बनाने से आपसी रिश्तों में प्रगाढ़ता के साथ प्यार और बढ़ता है।

रानीबाग मार्केट, पीतमपुरा, रोहिणी, प्रशांत विहार, सुल्तानपुरी, आदर्श नगर, शालीमार बाग सहित आजादपुर, मुखर्जी नगर और पंजाबी बाग के इलाकों में हैंड मेड राखियों को खरीदने या स्वयं बनाने के प्रति महिलाओं का रुझान देखने को मिल रहा है। सभी का यह मानना है कि चीरी राखियों के विरोध के लिए इससे अच्छा माध्यम नहीं हो सकता है। सुल्तानपुरी स्थित डीएवी एजुकेशनल एंड वेलफेयर एसोसिएशन नामक गैर सरकारी संस्था ने इसमें पहल करते हुए महिलाओं को राखी बनाने के लिए सामग्री मुहैया कराई, जहां दर्जनों बहनों ने अपने भाइयों के लिए राखी बनाई। कच्चे धागे में मोती और नग को पिरोकर बनाई गई इन राखियों में बहन का प्यार साफ झलकता है। कुछ बहनों ने इस बारे में अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए हाथ से बनी राखियों के महत्व के बारे में बताया।

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