दिल्ली के सियासी भविष्य के संकेत

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में रविवार को विस्तार व विभागों के फेरबदल के बाद बनी स्थिति से दिल्ली की भविष्य की सियासत की भी झलक दिख रही है। ताजा फेरबदल के बाद मोदी सरकार में जहां केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कद बढ़ गया है, वहीं स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री विजय गोयल के पर कतर दिए गए हैं। दिल्ली कोटे के इन दो मंत्रियों के कद बढ़ने और कम होने की घटना सूबे की राजनीति के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी व भूविज्ञान जैसे अहम विभाग संभाल रहे कैबिनेट मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को एक अन्य महत्वपूर्ण विभाग देकर प्रधानमंत्री ने उन पर विश्वास बरकरार रखा है। विगत 18 मई को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अनिल माधव दवे का दिल का दौरा पड़ने से निधन होने पर डॉ. हर्षवर्धन को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया था। ताजा फेरबदल के बाद भी यह अहम विभाग उनके पास बरकरार रखा गया है। यानी अब यह मंत्रालय उनके पास अतिरिक्त प्रभार के रूप में नहीं रहेगा और वह इस विभाग के पूर्णकालिक मंत्री होंगे। इसके अतिरिक्त विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं भूविज्ञान मंत्रालय उनके पास पूर्ववत बने रहेंगे। ऐसे में पुराने विभागों के साथ एक और महत्वपूर्ण विभाग मिलने से मोदी सरकार में डॉ. हर्षवर्धन का रुतबा बढ़ा है।

डॉ. हर्षवर्धन को जहां एक नया मंत्रालय दे दिया गया है, वहीं केंद्रीय राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार विजय गोयल से खेल जैसा अहम मंत्रालय छीन लिया गया है। उनके लिए संतोष की बात अब सिर्फ इतनी रही है कि उन्हें संसद में समन्वय की अहम जिम्मेदारी देते हुए संसदीय मामलों का राज्य मंत्री बनाया गया है। इसके साथ ही वह सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय में भी राज्य मंत्री होंगे। खेल मंत्रालय छिन जाने के साथ ही गोयल अब स्वतंत्र प्रभार के मंत्री नहीं होंगे यानी मोदी सरकार में उनका कद घटा है।

भाजपा के लिए दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव बहुत मायने रखते हैं और किसी भी स्तर पर वह विपक्षी आम आदमी पार्टी या कांग्रेस को बढ़त का मौका नहीं देना चाहती। विगत कुछ समय से प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी और विजय गोयल के बीच चल रही खींचतान भाजपा आलाकमान के लिए चिंता का सबब बनी हुई थी। ऐसे में यह माना जा सकता है कि दिल्ली कोटे के मंत्रियों के विभागों में बदलाव कर सूबे के भाजपा नेताओं को आलाकमान की ओर से यह संकेत देने की कोशिश की गई है कि संगठन से ऊपर कोई भी नहीं है और सभी को एकजुट होकर पार्टी के लिए काम करना होगा।

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