नई दिल्ली। मंगलवार को चार दिवसीय सूर्य उपासना का महापर्व छठ का पहला सोपान नहाय खाय संपन्न हो गया। व्रतियों ने सुबह स्नान के बाद अरवा चावल, चने की दाल और लौकी के पकवान तैयार कर भगवान भास्कर को भोग लगाया। इसके बाद उन्होंने खुद इन पकवानों को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। व्रतियों ने इन पकवानों को परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों व रिश्तेदारों को वितरित किया। नहाय खाय के साथ ही इलाकों में छठ पर्व को लेकर भक्तिमय माहौल बनने लगा है।
खरना की तैयारियों व्रती
पर्व की इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती बुधवार को होने वाले खरना की तैयारियों में जुट गए। खरना के क्रम में गुड़ व दूध से बनी खीर, घी लगी रोटी व केले को प्रसाद के रूप में चढ़ाने की परंपरा है। इस दिन व्रती दिन भर उपवास करते हैं और शाम को पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद ग्रहण करते है।
बंद कमरे में प्रसाद ग्रहण करते हैं व्रती
इस दौरान व्रती बंद कमरे में प्रसाद ग्रहण करते हैं और प्रसाद ग्रहण करने के क्रम में उनके कानों में किसी प्रकार की आवाज नहीं जानी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो वे उसी वक्त प्रसाद ग्रहण करना छोड़ देती हैं और उसी समय से उनका निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। 36 घंटे से अधिक लंबा यह उपवास उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही तोड़ा जाता है।
26 अक्टूबर की शाम को घाटों पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा
25 अक्टूबर को खरना संपन्न होने के बाद 26 अक्टूबर को शाम को घाटों पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन को बोलचाल की भाषा में संझकी अरग भी कहा जाता है। इसके बाद 27 अक्टूबर की अहले सुबह उगते सूर्य की पूजा अर्चना होगी।
क्या कहते हैं पुजारी
बुराड़ी के पेप्सी रोड स्थित माता वैष्णों देवी मंदिर के पुजारी पंडित पंकज पुरोहित बताते हैं कि दोनों ही दिन प्रसाद को बांस से बने दउरा और सूप में सजा कर नदी या पोखर किनारे ले जाने की प्रथा है। प्रसाद के रूप में विभिन्न तरह के फल के साथ विशेष प्रकार का पकवान ठेकुआ चढ़ाया जाता है। आटे को गुड़ या चीनी के साथ गूंथ कर फिर उसे घी में तलकर ठेकुआ बनाया जाता है। सूप में जिस प्रसाद को शाम को चढ़ाते हैं, सुबह उनकी जगह उसी तरह के दूसरे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्रसाद को बांस के सूप में सजाकर सूर्य देवता के समक्ष अर्पित कर कच्चे दूध तथा जल से सूर्य भगवान को अर्घ्य देने की प्रथा है।