नई दिल्ली। इन दिनों दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत के ज्यादातर शहरों में धुंध की चादर छाई हुई है। एक रिसर्च के अनुसार इससे बच्चों के फेफड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है। बच्चों में दम फूलने जैसी शिकायत आ रही है। इस जहर से अपने बच्चों को बचाना बेहद जरूरी है। बच्चों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है जिसके चलते
आइए जानते हैं कि इस धुंध से बच्चों को बचाना जरूरी क्यों है-
कोहरा: हवा में मौजूद पानी की बूंदों को कोहरा कहते हैं। यह एक प्राकृतिक घटना है। यह तब होता है जब दृश्यता एक किलोमीटर से कम हो जाती है और हवा में नमी की मात्र 75 फीसदी पहुंच जाती है। इसके लिए तापमान कम होना चाहिए जिससे संघनन हो सके। एक अध्ययन के मुताबिक इससे कोई बीमारी नहीं होती है।
धुंध : धुंध कोहरे, धुएं और प्रदूषित कण का मिश्रण होता है। यह मानव निर्मित और अत्याधिक प्रदूषण के चलते बनती है। धुंध के बादल बनने के लिए हवा में नमी, धुंध और प्रदूषण होना चाहिए। यह सुबह दस बजे से रात आठ बजे तक दिखती है। इससे अस्थमा व सांस की बीमारी बढ़ जाती है।
कुछ देर रहने पर असर : आंखों में खुजली, कफ, गले में संक्रमण, सिर दर्द, सांस लेने में दिक्कत, उल्टी, पेट में दर्द, सांस लेने में दिक्कत, नाक बहना, नाक से खून बहना आदि।
लंबे समय तक रहने पर प्रभाव : अस्थमा, फेफड़े की क्षमता कम होना, फेफड़े के उत्तकों पर असर, फेफड़ों का कैंसर, डिप्रेशन, बेचैनी, उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी, स्ट्रोक, डायबिटीज और उम्र कम होना इत्यादि।
कितने साल के बच्चों पर कितना असर
- नवजात (शून्य-2 माह) फेफड़ों का विकास प्रभावित, वायुकोशीय विकास, तेज सांस, फेफड़ों का आकार बढ़ना, वायु प्रदूषण का खतरा, तेज संक्रमण, फेफड़ों में संक्रमण और फेफड़ों संबंधित बीमारियों से मृत्यु।
- बच्चे (2-6 साल)फेफड़ों का आकार बढ़ने की बीमारी, वायु प्रदूषण का खतरा, अस्थमा, कफ, फेफड़ों की क्षमता कम होना और फेफड़ों का विकास प्रभावित होने से और भी कई बीमारी होने का खतरा।
- शिशु (2-24 माह) इस उम्र वर्ग के बच्चों के फेफड़ों पर धुंध और वायु प्रदूषण का ठीक उसी तरह प्रभाव पड़ता है जैसा की नवजात बच्चों पर। इस उम्र में भी वायुकोशीय और फेफड़ों का विकास हो रहा होता है। ऐसे में सावधानी जरूरी है।
- किशोर (12-18 साल) फेफड़े का विकास प्रभावित, फेफड़ों का आकार बढ़ना।
- स्कूल जाने वाले बच्चे(6-12 साल)अस्थमा, कफ, नव विकसित फेफड़े की क्षमता कम होना, विकास प्रभावित, वायु प्रदूषण का खतरा और सांस की बीमारी होने पर स्कूल में अनुपस्थिति बढ़ना।