नई दिल्ली। पंजाबी बाग स्थित आयुर्वेदा सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट मरीजों की भलाई छोड़कर दूसरों की तरक्की पर ज्यादा ध्यान दे रहा है। इंस्टीट्यूट के विस्तार के लिए रोहिणी में लगभग दस एकड़ जमीन तीन साल पहले दी गई थी, आज तक उस जमीन का इस्तेमाल नहीं हो पाया है। इसके विपरीत इंस्टीट्यूट एक एनजीओ से किराए के भवन में अपना काम चला रहा है। जिसके बदले में उन्हें हर महीने तीन लाख रुपए का किराया जमा करना पड़ता है।
सूत्रों का कहना है कि जितनी राशि किराए के रूप में जमा करनी पड़ रही है उससे अब तक रोहिणी में मिली जमीन पर नए इंस्टीट्यूट का निर्माण शुरू हो गया होता। सूत्रों ने बताया कि एनजीओ को जान-बूझकर फायदा पहुंचाने के लिए पंजाबी बाग के आयुर्वेदा सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट का विस्तार नहीं किया जा रहा है।
विस्तार से मरीजों का होगा फायदा: सेंट्रल काउंसिल रिसर्च आयुर्वेद साइंस (सीसीआरएएस) की ओर से देश भर में 34 आयुर्वेद रिसर्च इंस्टीट्यूट चल रहे हैं। पंजाबी बाग का रिसर्च सेंटर भी इसी का एक हिस्सा है। यह देश के आधुनिकतम आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट में से एक है। जहां मरीजों के लिए पैथॉलजी, रेडियॉलजी जैसी सभी सेवाएं मौजूद हैं।
डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मिलाकर यहां कुल 170 लोग तैनात हैं। वर्तमान में मरीजों के लिए यहां पर 50 बेड है, विस्तार होने पर इसकी संख्या 100 हो जाएगी। लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी आज तक इसके विस्तार की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।