कांग्रेस के पुराने चेहरों पर दांव अजमाने के कदम से भाजपा हाईकमान मुश्किल में

नई दिल्ली। नगर निगम के होने वाले चुनावों में जहां कांग्रेस अपने पुराने पार्षदों पर ही दांव आजमा रही है दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी का र्शीष नेतृत्व मौजूदा पार्षदों एवं उनके सगे संबंधियों को टिकट ना दिए जाने एवं वार्ड जंपिंग जैसे मुददों निर्णय लेने के बाद अब दुविधा की स्थिति में आ गए है। पार्टी के सूत्र बताते है कि अब इस बात पर बहस होने लगी है कि यदि नए चेहरों पर दांव आजमाया जाता है तो इसका पार्टी को खामियाजा भुगतना पड सकता है। जो नए चेहरे निगमों में महत्वपूर्ण पदों पर कमान संभालेंगे उनके लिए सत्ता संभालना चुनौती पूर्ण होगा। ऐसे में माना जा रहा है कि अंतिम क्षणों में जब उम्मीदवारों की सूची जारी होगी वह चौकान्ने वाली होगी। देरी करने की वजह ये है कि सूची विरोध का केंद्र ना बन पाए। पिछले पंद्रह दिनों से भाजपा में हंगामंेदार हालात बने हुए है। खासतौर से किसी भी मौजूदा पार्षद एवं उनके सगे संबंधियों को टिकट ना दिए जाने के फैसले के बाद से। भाजपा के ही पार्षद पार्टी नेतृत्व के निर्णयों को कटघरे में खडे कर रहे है। सवाल ये किया जाने लगा है कि जिन वार्डों में पिछले पचास सालों के दौरान जहां भाजपा कभी जीत हासिल नहीं कर पायी वहां से पहली बार 2012 के चुनावों में जीत हासिल की गई। उस वक्त मोदी लहर भी नहीं थीं। इसमें भी कांग्रेस अपने पुराने चेहरों पर ही दांव आजमा रही है। कहा जा रहा है कि कुछ पार्षदों की छबि हो सकता है कि खराब हो,लेकिन चंद पार्षदों के चलते सभी के टिकटों पर कैंची चालाया जाना दुर्भाग्य पूर्ण होगा। पार्टी के सूत्र बताते है कि भाजपा के लगातार चल रहे मंथन के बीच ये भी बातें सामने आयी कि 26 सीटों पर पार्टी को ऐसे उम्मीदवार दिखाई नहीं दे रहे है जो कि जीत हासिल कर सकें। इनमें पूर्वी दिल्ली के प्रीत बिहार वार्ड को भी गंभीरता से लिया जा रहा है। माना जा रहा है कि कुछ पुराने पार्षदों को टिकट दिया जाना आवश्यक है वह भी ऐसे जो कि विपक्ष के द्वारा उठाए जाने वाले मुददों का मुंह तोड जबाव दे सके। पार्टी इसके लिए सर्वे करा चुकी है बाकायदा ऐसे पार्षदों की सूची भी हाईकमान तक पहुंचा दी गई है। ये भी माना जा रहा है कि अगले डेढ से दो साल के बीच दिल्ली विधानसभा की कुछ सीटों पर चुनाव हो सकते है चुनाव के दौरान भी पार्टी आम आदमी पार्टी को कटघरे में खडा कर सकें इसके लिए प्रभावशाली चेहरों को आगे लाया जाए। केवल ये तय किया जा रहा है कि आखिर किस डेट में इस सूची को जारी किया जाए,ताकि एक बार सूची जारी होने के बाद उसमें किसी तरह का बदलाव करने की गुंजाईश ही ना रहे। वजह पार्टी के नेता इस बात को जानते है कि यदि कुछ पार्षदों को टिकट दी जाती है तो दूसरे पार्षद मुसीबत खडी कर सकते है। आखिर क्यों ना पनपे भ्रष्टाचार :- भाजपा में इस बात पर भी बहस छिडी है कि जहां निगम में भाजपा पार्षदों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे है और उन्हें टिकट ना दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है। वहीं सवाल ये भी उठ रहा है कि निगम से पार्षदों को आखिर क्या मिलता है एक बैठक के तीन सौ रूपए। जबकि जो वार्ड में कार्यालय चलाना होता है उस पर माह का औसतन खर्चा पचास से साठ हजार रूपए होता है। इसके अलावा पार्टी के लिए अलग से चंदा जुटाना होता है,लेकिन किसी के पास इस बात को देखने का वक्त नहीं कि आखिर कैसे निगम चलता है।

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