शासन प्रणाली व सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता व जवाबदेही लाने के लिए ‘कैग’ (कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल आफ इंडिया) की स्थापना अंग्रेजों ने 1858 में की थी। इसे ‘सुप्रीम ऑडिट इंस्टीच्यूशन’ भी कहा जाता है। कैग अरबों रुपए के सरकारी घोटालों का पर्दाफाश करने के अलावा संसद में पेश अपनी रिपोर्टों में विभिन्न विभागों की त्रुटियों की ओर भी सरकार का ध्यान दिलाता रहता है।
अब 21 जुलाई को ही इसने भारतीय रेलों में भोजन, स्वास्थ्य विभाग में दवाओं की गुणवत्ता और कमी तथा देश की प्रतिरक्षा तैयारियों संबंधी त्रुटियों की ओर सरकार का ध्यान दिलाया है। कैग के अनुसार रेलवे स्टेशनों और रेलगाडिय़ों में परोसी जाने वाली खाने-पीने की चीजें बासी और संदूषित होने के कारण खाने के योग्य नहीं होतीं। डिब्बाबंद और बोतलबंद चीजें इस्तेमाल की तयशुदा समयसीमा (एक्सपायरी डेट) बीत जाने के बावजूद बेची जाती हैं और घटिया ब्रांड के बोतलबंद पानी की आपूर्ति की जाती है।
रेलगाडिय़ों और रेलवे स्टेशनों पर सफाई नहीं रखी जाती तथा भोजन तैयार करने के लिए अशुद्ध पानी का इस्तेमाल किया जाता है। खाद्य पदार्थों में ‘कील’ और रेलगाडिय़ों की पैंट्री कारों में चूहे, कॉक्रोच आदि पाए गए हैं। कुछेक फर्मों को ही अनुबंध देने से उनका कैटरिंग पर एकाधिकार ही हो गया है और वे ‘गिरोह’ की तरह व्यवहार कर रही हैं।
वर्ष 2015 तक दिए गए 254 ठेकों में से 33 ठेके मात्र 2 फर्मों को ही दिए गए जबकि एक फर्म को 25 ठेके दिए गए। ठेके देने में ‘संख्या की सीमा’ का पालन न करके रेलवे ने कुछ फर्मों के एकाधिकार को बढ़ावा देकर क्वालिटी व सेवाओं की गुणवत्ता से समझौता किया हुआ है। स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’ के अंतर्गत प्रदत्त सेवाओं बारे रिपोर्ट में कैग ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निर्धारित कोष में से 9500 करोड़ रुपए खर्च न करने व पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों के सरकारी अस्पतालों में घटिया और एक्सपायर्ड दवाएं रोगियों को देने व दवाओं की भारी कमी का उल्लेख किया है।
सरकारी अस्पतालों में तो पैरासिटामोल और बी-कॉम्प्लैक्स जैसी दवाओं का भी अभाव है और 8 राज्यों में तो गर्भनिरोधक गोलियां, ओ.आर.एस. के पैकेट आदि बुनियादी जरूरत की दवाएं भी नहीं हैं। अन्य उपलब्ध दवाएं भी रोगियों की सेहत को जोखिम में डाल कर, क्वालिटी व इनके प्रयोग की समय सीमा की जांच किए बिना दी जा रही हैं। विशेषज्ञ तो एक ओर, आम डाक्टरों की भी सरकारी अस्पतालों में भारी कमी है।
इसी प्रकार भारतीय सेना की युद्धक तैयारी के अधूरेपन की ओर सरकार का ध्यान दिलाते हुए कैग ने इसे 2 वर्षों में दूसरी बार सावधान किया है। मई, 2015 में कैग ने सेना के कम हो रहे गोला-बारूद के भंडार संबंधी रिपोर्ट पेश करने के बाद अब एक बार फिर कहा है कि, ‘‘नियमानुसार कभी भी युद्ध के लिए तैयार रहने के उद्देश्य से सेना के पास इतना गोला-बारूद का भंडार अवश्य होना चाहिए जो 40 दिनों तक चल सके परंतु हमारी सेना के पास उससे बहुत कम गोला-बारूद ही है।’’
आज युद्ध होने की स्थिति में सेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले गोला-बारूद में से 40 प्रतिशत किस्म का गोला-बारूद 10 दिन भी नहीं चलेगा । इसी तरह 70 प्रतिशत टैंकों और तोपों में प्रयुक्त 44 प्रतिशत गोलों का भंडार भी 10 दिन ही चल पाएगा।
यहां तक कि सैनिकों को प्रशिक्षण देने के लिए आवश्यक गोला-बारूद का भंडार भी कम है और 88 प्रतिशत गोला-बारूद तो ऐसा है कि 5 दिन से भी कम समय के अभ्यास में समाप्त हो जाएगा।
मार्च, 2013 के बाद ऑर्डीनेंस फैक्टरी बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले गोला-बारूद की उपलब्धता और गुणवत्ता में भी कोई सुधार नहीं हुआ। भारतीय रेलवे, स्वास्थ्य विभाग और प्रतिरक्षा संबंधी त्रुटियों की ओर इंगित करके कैग ने एक बार फिर अपनी कत्र्तव्य परायणता का प्रमाण दिया है। इनका आम लोगों तथा हमारे देश की सुरक्षा से सीधा संबंध है जिनकी ओर ध्यान देकर सरकार को उन्हें यथाशीघ्र दूर करना चाहिए।