जोहड़ों की हालत पर भी नीति स्पष्ट करें उम्मीदवार

नई दिल्ली। बवाना के उप चुनाव में जोहड़ के मुद्दे को छूने से भले ही राजनीतिक दल बच रहे हों लेकिन मतदाता इसके अस्तित्व को भी मुद्दा बना रहे हैं। उनकी ¨चता इस बात को लेकर है कि दिल्ली देहात के गांवों में जो जोहड़ कभी दिनचर्या और संस्कृति का हिस्सा थे, वह कथित विकास के नाम पर दम तोड़ गए। तीज त्यौहार और मेले इन जोहड़ों के किनारे ही आयोजित किए जाते थे, वह भी इनकी तरह सिमटकर रह गए। तालाब और जोहड़ ही गांव में पानी का मुख्य स्त्रोत होते थे। गांव का पनघट भी किसी साफ पानी के जोहड़ के किनारे ही होता था जहां से महिलाएं समूह में लोकगीत गाती हुई पानी भरने जाती थीं, कुछ पल वहीं बैठ अपने दुख दर्द की बातें साझा किया करती थीं लेकिन जोहड़ और तालाब के साथ-साथ सब इतिहास के पन्नों तक सिमट गया।

बवाना के लोगों के मुताबिक उनके गांव में बीस-पच्चीस साल पहले तक 8-10 जोहड़ और छोटे तालाब (जोहड़ी) थे, लेकिन आज एक भी पूर्ण रूप से नहीं बचा है। गांव में 8 पान्ने (मोहल्ले) हैं। लोग अपने पशुओं को पानी पिलाते, नहलाते और कपड़े धोते थे। बेगवाण पान्ने में गांव का सबसे बड़ा जोहड़ कान्हा फेरा था। यह लगभग 20 एकड़ में फैला हुआ था, जिसके किनारे कुएं और शीतला माता का मंदिर था। होली के त्यौहार के बाद शीतला माता की पूजा के समय तालाब से मिट्टी निकालकर मंदिर पर चढ़ाई जाती थी जिससे तालाब की गहराई भी बनी रहती थी। मंदिर तो आज भी वहीं स्थित है लेकिन जोहड़ के स्थान पर राजीव गांधी स्टेडियम बन गया।

गांव की उत्तरी दिशा में खटाकर,बलाल वाली, दोहली,छतरी वाला तथा पूर्वी दिशा में ¨हदू वाला बाजार नाम से कई जोहड़ थे। यह लगभग सभी अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। दक्षिणी दिशा के एक जोहड़ को पाटकर डेसू का जोनल ऑफिस बना दिया गया था जो अब एनडीपीएल के पास है। बाजार वाले जोहड़ के कुछ हिस्से पर मौजाण पान्ने की चौपाल बन गई।

गिर रहा जल स्तर

मतदाताओं की ¨चता इस बात को लेकर है कि वर्षों पहले बरसात के दिनों में यह तालाब लबालब भर जाते थे। जमीन में पानी का स्तर 5-6 फीट की गहराई तक बना रहता था जो जोहड़ों के ना रहने से 50 से 60 फीट की गहराई तक जा चुका है। इस वजह से कुएं सूख चुके है। अब तो हालात ऐसे हो चुके हैं कि ¨सचाई के साधारण ट्यूबवेल भी जल स्तर नीचे जाने की वजह से बेकार हैं।

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