वोट तो देंगे, पर नेताओं की जुबान पर भरोसा नहीं

नई दिल्ली। ताऊ ध्यान रखना बच्चे का, ¨चता ना कर थारा ही ध्यान सै। कुछ इसी अंदाज में बवाना उप चुनाव में मतदाता और उम्मीदवार के बीच वोट मांगने और आश्वासन का सिलसिला चल रहा है। मतदाता के दरवाजे जो भी उम्मीदवार पहुंच रहा है उसे वह निराश तो बिल्कुल नहीं करता लेकिन उसकी पीड़ा उम्मीदवार के जाने के बाद जरूर छलक आती है। इस क्षेत्र के गांव तो दूर कॉलोनियों तक में गुस्से का गुबार अधिकांश मतदाताओं के मन में है जो जायज भी दिखता है क्यों कि दिल्ली का हिस्सा होने के बावजूद बवाना क्षेत्र आज भी कई मामलों में पिछड़ा नजर आता है।

उम्मीदवार गांवों में चौपाल-चौपाल जाकर समर्थन मांग रहे हैं तो हुक्के की गुड़गुड़ाहट के बीच चौपाल पर बैठे चौधरी भी- ‘¨चता नां कर भाई तू ही जीतेगा, हम तो थारे साथ ही सै।’ कहकर पूरा भरोसा दे रहे हैं। यह भरोसा सभी उम्मीदवारों को मिल रहा है। मजेदार बात यह है कि यह भरोसा सभी को मिल रहा है। कांग्रेस का पहुंचे तो उसे भी, भाजपा का पहुंचे तो उसको भी। मतदाता निराश आप वाले को भी नहीं करते। आश्वासनों से फिलहाल उम्मीदवार भी गदगद हैं।

बवाना गांव की चौपाल पर चुनावी चर्चा में तल्लीन राधेश्याम, श्यामलाल, मेहताब ¨सह जैसे कई लोग कहते हैं कि पहले भी यूं ही कहकर इन्होंने वोट ले लिए और फिर वोट मांगण आ गए। आज तक बसों की समस्या तो हल ना हुई, मेट्रो रेल भी को नां आई। बड़ी लालीपॉप दे रहे थे कि ताऊ ¨चता न करिए मेट्रो भी आएगी, बस भी आएंगी, पानी भी गंगा का आएगा लेकिन आज तक कुछ भी ना आया।

झूठे हैं सारे नेता

‘घर घर पाइप लाइन से पानी पहुंचाने का भरोसा पिछले दस साल से मिल रहा है, कहीं लाइन डली भी है लेकिन आज तक पानी तो इनमें आया नहीं। अब फिर कह रहे हैं कि वोट दे दो पानी पहुंच जाएगा।’ शाहबाद डेयरी की शबाना खान के इन शब्दों से कॉलोनियों में रहने वाले लोगों की पीड़ा स्वत: बयां हो जाती है। शबाना जैसे लोगों को नेताओं की जुबान पर कतई भरोसा नहीं दिखता। वे साफ कहते हैं कि वोट तो देना मजबूरी है, लोकतंत्र के पर्व में आहूति जरूर देंगे लेकिन लगता नहीं कि चुनाव के बाद यहां इनमें से कोई नेता शक्ल भी दिखाएगा। गली के नुक्कड़ से लेकर पनवाड़ी की दुकान पर लोग नेताओं को ही कोसते दिखते हैं। समस्याओं की लंबी सूची गिनाते हैं और फिर लंबी चर्चा के बाद इसी नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि वोट तो देंगे लेकिन नेताओं पर भरोसा नहीं है।

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली से भी लोग आहत नजर आते हैं। परेशान दिखते हैं इस बात को लेकर कि बीमारियां महामारी का रूप धारण कर चुकी हैं, घर-घर में चारपाई पड़ी है, कोई सुनने वाला नहीं है। इस विधानसभा क्षेत्र के रोहिणी के सेक्टरों में लोगों की व्यथा अलग है। यहां के अधिकांश मतदाता यह मान बैठे हैं कि वोट चाहे किसको भी दे दो, चुनाव बाद कोई भी समस्या का हल करने या दुख सुख में शामिल होने नहीं आता। अगर आते तो यहां भी पानी की किल्लत न होती और अपराध का ग्राफ भी न बढ़ता। आए दिन दहला देने वाली गोलियों की गूंज लोगों को परेशान करती है।

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