विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के नवादा जिले में रैली को संबोधित किया। बता दें कि पहले चरण के मतदान के लिए चुनावी अभियान का शनिवार को अंतिम दिन है और सोमवार को 49 चुनावी क्षेत्रों पर मतदान होंगे। यही वजह है कि मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी पार्टियां अंतिम समय तक एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। नीतीश कुमार ने नवादा की रैली में अपने गठबंधन को मजबूत बताते हुए कहा कि उनके संगठन में एक दूसरे के प्रति विश्वास है। कौन सी पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी यह सब कुछ मिलजुलकर तय किया गया है। यहां तक की नाम भी विचार विमर्श के बाद ही तय हुए हैं। नीतीश ने कहा कि इसके बाद मुख्यमंत्री के नाम पर भी लालू, कांग्रेस और उनकी पार्टी मिलकर ही फैसला लेंगे। मुख्यमंत्री ने अपने कट्टर प्रतिद्वंदी भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि विपक्षी गठबंधन में एकता की भारी कमी है। सहयोगी पार्टियां एक दूसरे पर ताने कसती हैं, यहां तक की सीटों के बटंवारे को लेकर भी खींचातान चल रही है। जहां तक मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार की बात है तो नीतीश के मुताबिक भाजपा गठबंधन तो अभी तक इस मामले में कुछ तय ही नहीं कर पाई है। वो कहते रहते हैं मोदीजी के संरक्षण में चुनाव लड़ रहे हैं। वहां नेतृत्व की भारी कमी है। भाजपा के लिए बिहार के चुनाव कितने अहम है इस पर बात करते हुए सीएम ने कहा केंद्र सरकार के कितने सारे मंत्री आजकल बिहार में है, ऐसा लग रहा है देश की राजधानी पटना हो गई है। केंद्र के लिए बिहार से जरूरी और कोई काम नहीं बचा है। पीएम मोदी की रैलियों पर निशाना साधते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि भाजपा में नेतृत्व का इतना अकाल है कि लगता है पंचायत चुनाव भी मोदी के भरोसे ही लड़े जाएंगे। चुनाव में उठाए जा रहे मुद्दों पर नीतीश का कहना है कि पीएम मोदी गोमांस जैसे मामले उठा रहे हैं जिनका बिहार से कोई लेना-देना ही नहीं है। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि बिजली के मुद्दे पर उन्हें घेरने वाली भाजपा शायद भूल गई कि लोकसभा चुनाव में उनकी वजह से पूरे राज्य में बिजली थी ताकि मोदी को लोग टीवी पर देख सकेंऔर उनके झूठे वादों पर यकीन कर सके। मेरी वजह से उन्हें जीत मिली और वह इतने एहसान फरामोश हैं कि मुझे जीत का श्रेय भी नहीं दिया। बिहार चुनाव के पहले चरण में 12 अक्टूबर को 49 सीटों पर मतदान होना है। इस बार का बिहार चुनाव बीजेपी और पीएम मोदी के लिए साख की लड़ाई बन गया है। वहीं 20 साल तक एक-दूसरे के धुर विरोधी रहने के बाद साथ आए नीतीश कुमार और लालू यादव के लिए भी ये चुनाव काफी अहम है।
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