साहित्यकार सुधाकर पाठक के नेतृत्व में हुआ हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी का गठन

pathakनई दिल्ली। भारत की भाषाओं को संवर्धित करने के लिए केंद्र और राज्यों ने अनेको संस्थाओं अकादमियों का गठन किया हुआ है किन्तु ये संस्थाएं अपनी कार्यश्ौली और सीमाओं के चलते भाषा को वो योगदान नही दे पायी जिसके लिए इन्हें स्थापित किया गया था। आपस में समुचित तालमेल न होने के कारण इन संस्थाओं के मध्य संघर्ष की स्थिति बनी रही फलस्वरूप भाषा के मुद्दे कहीं पीछे छूटते गये। ऐसे में हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी कि स्थापना एक उम्मीद है कि भारतीय भाषाओं के आपस में समन्वय करके हिन्दी को हिन्दुस्तान में सर्व स्वीकारिता का माहौल बनाया जा सके।
अकादमी के अध्यक्ष सुधाकर पाठक ने जनमत की पुकार को बताया कि हिन्दी क्रांतियों और आंदोलनों के सहारे आगे नही बढ़ सकती है बिना आधार के सुधार की कल्पना भी नही की जा सकती। हिन्दी को रोजगार, विज्ञान और तकनीकी की भाषा बना कर इसे राष्ट्रभाषा ही नही विश्वभाषा बनाया जा सकता है। अकादमी के महासचिव डॉ. पवन विजय कहते हैं कि हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं की समृद्धता को उपयोगिता में बदलकर ही हम उन्हें शेष विश्व से प्रतियोगिता के लिए तैयार कर सकते हैं। डॉ विजय का माननाहै कि हिन्दी में सभी भाषाओं के समन्वय की विशेष क्षमता है लगभग ढाई लाख मूल शब्द हिन्दी में है जोकि किसी अन्य भाषा में नही है। हिन्दी के अकादमिक व्यावसायिक स्वरुप के मानकीकरण से ही आगे के रास्ते खुलेंगे और इस कार्य के लिए हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी प्रतिबद्ध है।हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी जनसुलभ प्रकाशन की दिशा में भी कार्य कर रही है। अकादमी की सम्पादक डॉ. किरण मिश्रा ने बताया कि प्रकाशन के माध्यम से भारत के हर कोने तथा प्रत्येक बोली भाषा से लेखक रचनाकार समीक्षक इत्यादि तैयार किये जायेंगे।
अकादमी जाने माने भाषाविदों के साथ मिलकर कार्य कर रही है जिसमें बुन्देली विशेषज्ञ डॉ कुमारेन्द्र सिंह सेंगर राजस्थानी भाषा के नीरज दईया छत्तीसगढ़ी के बलदाऊ साहू प्रमुख हैं। अनुवादक डॉ पूनम गुप्ता और मीडिया हस्ताक्षर रंजीता प्रकाश के अनुभवों का लाभ अकादमी को मिल रहा है। हिन्दी भाषा के लिए जीवन समर्पित करने वाले हामिद खान व पत्रकार बृजेश द्विवेदी की सेवाएं भी अकादमी को प्राप्त हो रही हैं
अकादमी ने भाषा के उन्नयन के लिए कई विभाग बनाये है जिसमें विभिन्न भाषाओं के अनुवाद और मानकीकरण करने के काम से लेकर अकादमिक सांस्कृतिक और सांगठनिक मुद्दों पर गंभीरता से काम किया जा रहा है।
सरकार की ओर से भाषाई समरसता बढ़ाने वाले वक्तव्यों को ध्यान में रखते हुए अकादमी अपने प्रकाशन, ट्टभाषा भारती’ पत्रिका और अन्य कार्यों के माध्यम से हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को सींचने व समृद्ध करने का कार्य कर रही है।

Share Button

Related posts

Leave a Comment