वक्त के साथ ‘रिस्की’ हो गए हैं राहुल गांधी

_92984096_gettyimages-611053754बुधवार को राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें संसद में नहीं बोलने दिया जा रहा है क्योंकि उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ पुख़्ता सबूत हैं और अगर उन्हें संसद में नहीं बोलने दिया जाएगा तो वो मोदी का ग़ुब्बारा फोड़ देंगे.

राहुल के इस बयान पर भारी राजनीतिक उठा पटक चल रही है लेकिन कुछ ये भी कह रहे हैं कि क़रीब 12 साल के लंबे राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बाद वो जोखिम लेना सीख गए हैं.

आजकल जब वो मंच पर होते हैं, तो दिल खोलकर बोलते हैं. अपने विरोधियों के ख़िलाफ. तो कई बार अपनों के ख़िलाफ़ भी.

‘आक्रामक राहुल’ के बयान

  • अरहर मोदी: जुलाई, 2016 में बढ़ती कीमतों के मुद्दे पर संसद में राहुल ने बेबाकी से अपनी बात रखी थी. 16 मिनट के अपने वक्तव्य में राहुल गांधी ने कहा, “जो घर-घर मोदी का नारा लाए थे, उनके लिए हर घर में नया नारा चल रहा है – अरहर मोदी, अरहर मोदी.”
  • मोदी फ़ेयर एंड लवली स्कीम: काले धन के मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए राहुल ने लोकसभा में कहा, “मोदी जी की फेयर एंड लवली स्कीम इतनी बढ़िया है कि कालाधन रखने वाला हर आदमी, उसे सफ़ेद में तबदील कर सकता है.”
  • मोदी सूट-बूट वालों की सरकार हैं: अप्रैल, 2015 में संसद में बोलते हुए राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उनकी सरकार सूट-बूट वालों की सरकार है. और अमीर लोगों के हित पूरे करने के लिए काम कर रही है.
  • फ़ौजियों के ख़ून की दलाली: “जो हमारे जवान हैं, जिन्होंने अपना ख़ून दिया है जम्मू और कश्मीर में. हिंदुस्तान के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किया है, उनके ख़ून के पीछे आप छिपे हैं. आप उनकी दलाली कर रहे हो. यह गलत है.” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए अक्टूबर, 2016 में राहुल गांधी ने यह बयान दिया था.

चेहरे-मोहरे से राहुल अपने दादा फ़िरोज़ गांधी पर गए हैं. और लगता है कि वो वक्त के साथ ख़ुद को उसी तरह बनाने की कोशिश में हैं.

हालांकि आलोचक उनके इस हाव-भाव को नाटकीय मानते हैं. स्क्रिप्ट पर आधारित बताते हैं. साथ ही उनके इस रुख के ज़मीनी प्रभाव पर कई सवाल खड़े करते हैं.

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ज़रा फ्लैशबैक में चलिए…

साल 2004 में फ़रवरी की ठंडी बरसात होकर थमी थी और कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के मुख्यधारा की राजनीति में आने का ऐलान किया था. मां सोनिया गांधी ने वंश-परंपरा का मान रखते हुए बेटे को अमेठी की सुरक्षित सीट दी थी.

सुरक्षित राजनीतिक ज़मीन मिलने और 2004 में यूपीए की सरकार बनने के बाद राहुल की कुछ पर्सनल बातें पब्लिक हुईं. पता चला कि उनकी एक स्पेनिश गर्लफ्रेंड है. पेशे से आर्किटेक्ट है और वेनेज़ुएला में रहती है.

लेकिन राजनीति ऐसे व्यक्तिगत मामलों को लेकर सहिष्णु नहीं होती. इसलिए राहुल को ‘देसी बनाम विदेशी’ नागरिक की बहस में खींच लिया गया.

इस बात को दबाने में और विपक्ष से यह मुद्दा छीनने में कांग्रेस को कई साल लगे.

साल 2008 में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विरप्पा मोइली ने ऐलान किया कि 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस के पीएम पद के उम्मीदवार राहुल गांधी होंगे.

इसे लेकर पार्टी के भीतर भी काफ़ी शंकाएं थी. विरोधी राहुल पर व्यक्तिगत आक्रमण करना शुरू कर चुके थे.

 

यही वह दौर था, जब राहुल को सोशल मीडिया पर कई व्यंग्यपूर्ण उपनाम दिए गए. राहुल गांधी को इग्नोर करने के लिए ख़ास किस्म की ब्रांडिंग की गई.

लेकिन इससे पार पाने के लिए साल 2015 में राहुल गांधी को री-लॉन्च किया गया.

राहुल गांधी का री-लॉन्च

साल 2013 में राहुल पार्टी उपाध्यक्ष बने थे. 2014 के आम चुनाव के दौरान राहुल ने 6 हफ्ते का एक रूट प्लान बनाया, जिसके तहत देशभर में कुल 125 रैलियां की गईं. कांग्रेस फिर भी चुनाव हार गई.

राहुल ने अपनी मां सोनिया गांधी के साथ मिलकर इस हार की ज़िम्मेदारी ली

साल 2015 में राहुल गांधी 56 दिन के लिए अचानक राजनीति से दूर हो गए.

विरोधियों ने कहा, राहुल मायूस हो चुके हैं. जबकि कांग्रेस पार्टी के लोग इसे राहुल का ‘चिंतन ब्रेक’ बता रहे थे.

19 अप्रैल, 2015 को उनकी वापसी हुई और किसान खेत मजदूर रैली का आयोजन किया गया. इस बार राहुल का अवतार पहले से अलग था. वो आक्रामक हो चुके थे और विपक्षियों को उनके अंदाज़ में जवाब देना सीख गए थे.

कांग्रेस समर्थक राहुल के 2.0 वर्जन को उनका री-लॉन्च मानते हैं.

लेकिन वंश-परंपरा के जितने फ़ायदे राहुल गांधी को हुए होंगे, उतनी रुकावटें भी उनके सामने दिखाई देती रही हैं. और विपक्षी उनकी इस कमज़ोरी को बख़ूबी समझते हैं.

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