कभी कल्पना भी नहीं की थी कि गोबर इतना लाभदायक साबित होता है। बचपन में जब पढ़ते थे तो शिक्षक किसी छात्र पर नाराज होने पर उसे लताडते हुए कहते थे कि तुम्हारे दिमाग में गोबर भरा हुआ है। तब गोबर गणेश जैसे मुहावरे सुनने को मिलते थे। उस समय गोबर की उपयोगिता कंडे बनाने या खाद के रूप में उसका इस्तेमाल करने तक ही सीमित थी। बाद में टैक्नोलॉजी के विकास के साथ गोबर गैस बना कर उसका इस्तेमाल खाना पकाने के लिए किया जाने लगा। मगर अब तो गाय से प्रेम करने वाले बाबा रामदेव व लालू यादव ने गोबर की जो उपयोगिता हासिल की वह तो चौंकने वाली है। बाबा रामदेव ने गोबर से साबुन तैयार करके मल्टीनेशनल कंपनियों को चुनौती दे डाली। अब जो लालू यादव ने गोबर की उपयोगिता बताई है वह तो और चौकाने वाली है। बिहार में खुलासा हुआ है कि लालू यादव के परिवार ने महज चार लाख रुपए की एक कंपनी के शेयर खरीद कर उसकी 100 करोड़ रुपए की कीमत वाली बेशकीमती जमीन हासलि कर ली। यह खुलासा उस आरोप के बाद हुआ जब यह पता चला कि इस माल की खुदाई में निकली मिट्टी वहां के चिडियाघर को 90 लाख रुपए में बेची गई थी। यह खुलासा होने के बाद लालू का जो पहला बयान आया वो यह था कि हमने चिडियाघर को अपना गोबर मुफ्त में दिया था। मतलब यह कि गोबर मुफ्त में देकर उन्हें मिट्टी बेचने का अधिकार हासिल हो गया था। इससे पहले तो उन्होंने चारा घोटाले के जरिए नाम कमाया था। जेल गए। चुनाव लड़ने से वंचित किए गए। अब उन्होंने साबित कर दिया है कि अगर दिमाग हो तो चारे से दूध तैयार करने के बाद बेकार समझे जाने वाले गोबर का भी लाभदायी इस्तेमाल किया जा सकता है। गोबर तो मानों वह लक्स है जोकि मिट्टी का सर्फ खरीदने पर मुफ्त में मिल रहा है। लालू का प्रबंध गजब का है। जब वे रेलमंत्री थे तो उन्होंने रेल गाडियों में अतिरिक्त डिब्बे जोड़ कर उसका मुनाफा बढ़ा दिया था। तमाम गाडियों को एक्सप्रेस नाम देकर उनके किराए में बढोत्तरी कर दी थी। वे तो कुत्ते के पिल्ले पर शेर के शावक का टैग लगाकर उसे भी चिडियाघरों को बेचने की काबिलियत रखते हैं। हर नेता का एक आर्थिक सलाहकार होता है। जब राजशाही थी तब राजाओं की मदद करने के लिए नगर सेठ हुआ करते थे। हरियाणा सरीखे संपन्न राज्य में जहां जाटो और बनियो का सदा टकराव होता आया है वहां भी जाट नेताओं की आर्थिक मदद करने में हमेशा बनिए ही आगे रहे। बंसीलाल की तिजोरी सेठ किशनदास संभालते थे। फिर राजनीति में दखल देने के लिए सुभाष चंद्रा, नवीन जिंदल, ओम प्रकाश जिंदल सरीखे धनवान आगे आए। इन्हीं में से एक भिवानी के बनिए प्रेम चंद गुप्ता भी है जैसे एयरटेल के विज्ञापन में कहा जाता था कि जिदंगी में दोस्त जरूरी होता है, उसी तरह नेताओं के लिए अमर सिंह जरूरी होता है जोकि उन्हें आर्थिक निजी सलाह दे सकता हो। उनका पैसा खपाने के साथ-साथ उनके बाथरूम से लेकर बैड रूम तक की जरूरते पूरी कर सकता हो। सो जो संबंध अमर सिंह का मुलायम सिंह के साथ था, वहीं रिश्ते प्रेम गुप्ता व लालू यादव के है। अमर सिंह ठाकुर होने के कारण अपने बड़बोलेपन से बाज नहीं आते थे व उन्हें कई बार इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। वहीं प्रेम गुप्ता बनिए होने के कारण बहुत चुपी के साथ काम करते आए है। उन्हें लालू ने राज्यसभा का सदस्य बनवाया। यूपीए सरकार में कंपनी मामलों का मंत्री बनवाया। वे लालू यादव के साथ लगातार चिपके रहते थे। इसे उनकी पार्टी के ही तमाम नेता नापसंद करते थे और अक्सर चिढ़ कर उन्हें लालू का पीकदान करार देते थे। प्रेम गुप्ता ने कंपनी मामलों का मंत्री रहते हुए दशको से लटके मामलों को निपटाया। हालांकि इसे लेकर भी तरह-तरह की बातें कहीं जाती है मगर यह सच है कि उन्होंने मंत्रालय को स्ट्रीमलाइन कर दिया। जब लालू यादव रेलमंत्री थे तब भी वहां के तमाम कामकाज प्रेम गुप्ता के ही जरिए हुआ करते थे। वे पहले हांगकांग में रहने वाले एनआरआई थे जो कि 1990 के दशक में भारत आए और लालू के करीब हो गए। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने यह साबित कर दिया कि बनिए जिस चीज में हाथ लगा दे वह सोना हो जाती है। बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि एक गरीब बनिए को कहीं से एक मरा हुआ चूहा मिला। उसने उसे बिल्ली के मालिक को बेचा और उससे मिली रकम से गुड़ चने खरीद कर उन्हें मजदूरों को बेच कर मुनाफा कमाया और देखते ही देखते वह करोड़पति बन गया। प्रेम गुप्ता बहुत महान है। बनिए दानी होते हैं। उन्होंने लालू यादव के जरिए जो किया, कमाया।,यह तो मालूम नहीं मगर उनका अपना सर्वस्व दान है। जब लालू यादव रेल मंत्री थे तब बिहार की एक कंपनी जिसने रेलवे की जमीन खरीदी थी, उससे प्रेम गुप्ता के बेटो की कंपनी ने बात करा वहां पर पटना में एक दो एकड़ का बेशकीमती प्लाट खरीदा। पिछले समय लालू यादव के बेटे, बेटी व पत्नी इस कंपनी की निदेशक बनी। उन्होंने करीब चार लाख रुपए की कीमत के शेयर खरीदे। उनके निदेशक बनने के बाद प्रेम गुप्ता के परिवार के सदस्यों ने कंपनी के निदेशक मंडल से इस्तीफा दे दिया और चंद लाख दे कर लालू का परिवार 100 करोड रुपए की कीमत वाली जमीन का मालिक बन गया जिस पर मॉल बनाकर 500 करोड़ रुपए कमाए जा सकेंगे। अब यदि आरोप और पटना में चल रहा विवाद सही तो है और किसी में इतनी अकल जोकि महज चंद लाख का निवेश करके रातोरांत करोड़ो का मालिक बन बनाए। यह काम तो सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा की कंपनी भी नहीं कर पाई थी। यह ठीक वैसा ही था जैसे कि बिहार जाने वाली रेलगाडियो के आरक्षित डिब्बो में कुली सीट व बर्थ पर कब्जा जमा कर आया जाता हैं और मंत्रियो से कुछ पैसे लेकर उनको इसका कब्जा दे दते हैं। पैसा कमाने के लिए दिमाग की जरूरत होती है। लोग तो गोबर से लेकर लहरों तक से पैसा कमा लेते हैं।
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