गोमांस रखने का आरोप, 12 साल बाद बरी

नई दिल्ली। उत्तरी दिल्ली में मीट का कारोबार करने वाले एक बाप-बेटे के खिलाफ अदालत में पुलिस यह साबित नहीं कर पाई कि छापेमारी में उनके कोल्ड स्टोरेज से जब्त मीट का नमूना गाय का मांस था। कोर्ट ने दोनों एनआरआई व्यापारियों को संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपों से बरी कर दिया।

मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट विप्लव डबास ने दर्शन कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड के मालिक दर्शन जय सिंघानी और उनके बेटे एवं मैनेजर नरेंद्र जय सिंघानी को दिल्ली ऐग्रीकल्चरल कैटल प्रेजर्वेशन ऐक्ट 1994 और दिल्ली म्यूनिसिपल ऐक्ट के प्रावधानों के तहत लगाए गए सभी आरोपों से बरी किया है। अदालत ने कहा कि तमाम गवाहों और टिप्पणियों के मद्देजनर यह पाया गया कि अभियोजन अपने केस को संदेह से परे जाकर साबित करने में नाकाम रहा।

अभियोजन का कहना था कि दर्शन कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड के मालिक दर्शन जय सिंघानी और मैनेजर नरेंद्र जय सिंघानी के पास से साल 2005 में गाय का मांस मिला था। अभियोजन ने इसे दिल्ली ऐग्रीकल्चरल कैटल प्रेजर्वेशन ऐक्ट 1994 के तहत ‘कृषि पशु’ के प्रतिबंधित रूप से बलि दिए जाने से जुड़े प्रावधानों और दिल्ली म्यूनिसिपल ऐक्ट की धारा 424(4) के प्रावधानों के उल्लंघन बताया और आरोप साबित करने के लिए 10 गवाह पेश किए।

आरोपियों के वकील प्रदीप राणा ने कोर्ट को बताया कि पुलिस ने संबंधित निगम के साथ उस दिन केशवपुरम स्थित दो कोल्ड स्टोरेज पर छापेमारी की थी। दूसरे पक्ष को नियमों का पालन करते हुए नमूने का काउंटर पीस दे दिया गया, लेकिन उनके क्लाइंट को नहीं दिया गया ताकि नमूने की जांच को लेकर विवाद उठने पर अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए मांस के उस काउंटर पीस को कोर्ट में पेश किया जा सके। जिस पक्ष को काउंटर पीस दिया गया था, उसने साबित कर दिया था कि उसके पास से मिला मांस गाय का नहीं, भैंस का था। लेकिन उनके क्लाइंट के पास काउंटर पीस न होने से वह अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर सकते।

अदालत ने बचाव पक्ष के वकील के साथ अभियोजन के गवाहों के बयानों में विरोधाभास पर भी गौर किया और कहा कि पुलिस यह साबित नहीं कर पाई कि जांच के लिए भेजे गए नमूने कथित आरोपियों के ही स्टोरेज से लिए गए या लैबरेटरी जांच में जिस मांस को गाय का बताया गया, वह आरोपियों के ही पास से जब्त नमूना था।

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