बाहरी दिल्ली : वह भी एक वक्त था जब पर्दे के पीछे से डायलॉग बोले जाते थे, कलाकार माइक थामे होता था। पर्दे के पीछे से दूसरा डायलॉग बोलता था, माइक की आवाज भी रुक जाती थी। हर सीन के बाद पर्दा गिराना पड़ता था। महिलाओं के रोल भी पुरुष ही करते थे, लेकिन बदले दौर में सब कुछ बदल गया है, महिला कलाकार अब महिलाओं के रोल कर रही हैं। पहले दर्शक बैठने के लिए टाट पट्टी घर से लेकर आते थे आज रामलीला कमेटी तमाम इंतजाम करती है। तकनीक ने अब रामलीलाओं का स्वरूप ही बदल दिया है। तकनीक का भरपूर इस्तेमाल करने की कोशिश अब रामलीलाओं में हो रही है। कलाकार भी अब डायलॉग खुद ही याद करते हैं।
अशोक विहार फेज एक में करीब 37 साल से भी ज्यादा वक्त से आयोजित की जा रही रामलीला से जुड़े अशोक विहार रामलीला कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक डॉ.महेंद्र नागपाल रामलीला के अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि पहले भी रामलीला में अतिथियों के आदर सत्कार की परंपरा हुआ करती थी और आज भी है, लेकिन पहले रामलीला के मंचन को बीच में रोकना पड़ता था क्यों कि एक ही मंच हुआ करता था, लेकिन अब रामलीला का मंचन जब एक बार शुरू हो तो रामलीला निरंतर चलती है। अतिथियों के स्वागत का कार्यक्रम भी अलग मंच पर चलता है। अब तीन मंच हैं, पहले कम बजट में रामलीला का मंचन हो जाता था लेकिन तकनीक के युग में बजट भी बढ़ा है। पहले दिल्ली में ही गांव होते थे तो उस पीढ़ी के लोगों को गांव के जीवन के बारे में सब कुछ पता होता था, लेकिन अब जो नई पीढी है उनमें से ज्यादातर गांव के बारे में जानते ही नहीं हैं केवल किताबों में गांव के बारे में पढ़ते हैं। कुआं, रहट, कोल्हू आदि ऐसी चीजें हैं जिन्हें बच्चे जानते नहीं इसलिए इस चीज को अब रामलीला स्थल पर विशेष तौर पर दर्शाना पड़ता है ताकि बच्चे गांवों के बारे में जान सकें अपनी पुरानी परंपराओं को जान सकें गांव की लुक देने की कोशिश की गई है। आधुनिकता में पुरानी चीजों का समावेश हमारी रामलीला में देखने को मिल जाएगा।