महिलाओं के हक की आवाज हैं मोना

बाहरी दिल्ली: मोना शौकीन बाल श्रम की दलदल में फंसी बच्चियों व अशिक्षित महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ रही हैं। उनकी इस लड़ाई का नतीजा है कि घरों में बंधक बनाकर रखी गई घरेलू सहायिका के रुप में कार्यरत कई बच्चियों को आजादी मिल सकी है और यौन, घरेलू ¨हसा की शिकार कई महिलाओं को न्याय मिल सका है। वह इस साल अब तक बाल मजूदरी की शिकार पचास से अधिक बच्चियों को मुक्त करा चुकी हैं। बीबी ब्लाक, वेस्ट शालीमार की आरडब्ल्यूए की वर्तमान उपाध्यक्ष 33 वर्षीय मोना शौकीन पिछले दस साल से समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वह न केवल दिल्ली बल्कि गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा आदि इलाकों में अपनी मुहिम को अंजाम दे रही हैं। अभी कुछ दिन पूर्व ही निहाल विहार इलाके में छेड़खानी का विरोध करने पर कुछ युवकों ने एक महिला व उसके पति की पिटाई कर दी थी, लेकिन पुलिस अपने तरीके से मामला दर्ज करना चाह रही थी। मोना खुद जाकर पीड़ित से मिली और उन्हें थाने लेकर गई और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर उचित धाराओं में मामला दर्ज कराया। इसी तरह से तीन माह पूर्व ही उन्होंने शालीमार बाग इलाके में कारोबारी के घर में नाबालिग घरेलू सहायिका की मौत के मामले को भी अंजाम तक पहुंचाया और आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराने में कामयाब रहीं। मोना के खाते में ऐसे अनगिनत मामले है। दूसरे की पीड़ा को समझा खुद की पीड़ा: मोना की शादी के बाद दाम्पत्य जीवन में आई कड़वाहट के कारण उन्हें पति से अलग होना पड़ गया। इस दौरान उन्हें जो पीड़ा मिली, उससे उन्हें दूसरी महिलाओं की पीड़ा का अहसास हुआ और उन्होंने तब से जरूरतमंद महिलाओं व बच्चियों को मदद करने की ठान ली। शुरू में वह अपने मकसद को साधने के लिए एक एनजीओ से जुड़ गई और इस दौरान उन्होंने ऐसी बच्चियों व महिलाओं को कानूनी रूप से कैसे मदद की जाए, इसके बारे में जानकारी हासिल की। बाद में उन्होंने दस लोगों की टीम तैयार की और एक खुशी लाइफ केयर सोसायटी की नींव रखीं और अब तक इसके माध्यम से दो हजार से अधिक जरूरतमंदों को मदद कर चुकी हैं। पार्कों में जाकर करती हैं जागरूक: मोना पार्कों में जाकर महिलाओं को घरेलू ¨हसा के प्रावधान के बारे में बताती हैं और उन्हें किसी भी कीमत पर घरेलू ¨हसा का विरोध करने के लिए प्रेरित करती हैं। इसके अलावा वह जहांगीरपुरी, शालीमार बाग, पीतमपुरा, वजीरपुर आदि की झुग्गियों में जाकर बाल श्रम कर रही बच्चियों के परिजनों से मिलती है और उनकी समस्याओं का समाधान करती हैं।

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