डॉ. गौरीशंकर राजहंस
वर्ष 2012 में जब शिंजो एबी आम चुनाव में उतरे थे, तभी उन्होंने कहा था कि समय बहुत बदल गया है। अब जापान को अपनी सुरक्षा का स्वयं प्रबंध करना होगा। वह बहुत दिनों तक अमेरिका के भरोसे नहीं रह सकता है। द्वितीय विश्वयुद्व में जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागाशाकी पर परमाणु बम गिराए थे तब जापान बुरी तरह तबाह हो गया था और उसने आत्मसमर्पण कर दिया था। जापान की लाचारी देखकर अमेरिका ने उस पर युद्ध विरोधी संविधान थोंप दिया था जिसमें यह प्रावधान था कि भविष्य में जापान कभी किसी देश पर सैन्य शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा। जापान न कोई सेना रखेगा और न कोई सैनिक साजो-सामान बनाएगा। सच कहा जाए तो ऐसा प्रावधान संविधान में करके अमेरिका ने जापान को सदा के लिए पंगु बना दिया था।
मध्यावधि चुनाव के दौरान शिंजो एबी ने कहा कि अब संसार की राजनीतिक परिस्थिति पूरी तरह बदल गई है और दूसरे विश्वयुद्ध को 70 वर्ष हो गए हैं। जिस तरह जापान के पड़ोसी देश उत्तर कोरिया और चीन शत्रुता का रुख अपनाए हुए हैं, वैसी हालत में जापान को फिर से अपना संविधान लिखना होगा जिसमें यह प्रावधान करना होगा कि बदली हुई परिस्थितियों में जापान आत्मरक्षा के लिए एक सैनिक शक्ति बन सकता है। जापान की संसद में शिंजो एबी की पार्टी को बहुमत अवश्य मिला था, लेकिन संविधान को बदलने के लिए दो-तिहाई बहुमत की दरकार थी जो उसे अब प्राप्त हो गया है। लिहाजा इसकी पूरी संभावना है कि वह जनता की भावना को देखकर अमेरिका की ओर से थोपे गए संविधान में आमूल चूल परिवर्तन करेंगे। इसमें उन्हें अपने सांसदों का भी समर्थन हासिल होगा, क्योंकि जापान के संविधान में इतना महत्वपूर्ण बदलाव करने के लिए जनमत संग्रह करना आवश्यक होगा।
यह कहना आवश्यक है कि जापान के मित्र दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह से तंग आकर यह फैसला कर लिया है कि वह भी परमाणु अस्त्र बनाएगा। यदि जापान के संविधान में परिवर्तन हुआ तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कुछ वर्षो में वह भी परमाणु हथियार बना ले। शिंजो एबी का कहना है कि 2020 में जापान में ओलंपिक खेल होने वाले हैं। उसके पहले ही वे संविधान में इस तरह का परिवर्तन चाहते है जिससे सभी देश यह समझ लें कि जापान पहले की तरह कमजोर नहीं है। एशिया की राजनीति तेजी से बदल रही है और उत्तर कोरिया का सनकी तानाशाह कब क्या कर गुजरेगा इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। उसके पास परमाणु से लैस अनगिनत मिसाइल हैं जिससे वह कहीं भी हमला कर सकता है। ऐसी हालत में अपनी आत्मरक्षा के लिए जापान को अपने संविधान में परिवर्तन करके एक सैनिक शक्ति तो बनना ही होगा।
शिंजो एबी की अभूतपूर्व विजय से भारत को बहुत लाभ हुआ है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी ‘केमेस्टरी’ बहुत ही सुखद है। हम चीन से दोस्ती करने की लाख कोशिश करें परन्तु वह हमारा मित्र नहीं हो सकता है। ऐसे में यदि जापान और भारत मिलकर एशिया में एक शक्ति के रूप में उभरें तो चीन उनका मुकाबला नहीं कर पाएगा। अभी हाल में जब शिंजो एबी भारत आए थे तो भारत के प्रधानमंत्री के साथ मिलकर उन्होंने जो दोस्ती का नया दौर शुरू किया है उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। भारत में पहली बार ‘बुलेट ट्रेन’ का शिलान्याश किया गया। जापान ने इसके लिए 88 हजार करोड़ रुपये देने का वायदा किया है। बुंलेट ट्रेन के शुरू होने से भारत के औद्योगिक विकास को निश्चित रूप से रफ्तार मिलेगी और लाखों को रोजगार मिलेगा। संक्षेप में, शिंजो एबी अभूतपूर्व विजय से भारत और जापान की दोस्ती का नया दौर शुरू होगा जो पूर्णत: भारत के हित में होगा।