गलती कांग्रेस की, ठीकरा राज्यपाल पर

सुरेश हिंदुस्थानी
उत्तरप्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद जो वातावरण बना है, उसमें पंजाब को छोडक़र कांग्रेस पार्टी को अपमान का स्थिति का सामना करना पड़ा है। अपमान इसलिए भी कहा जा सकता है कि गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सबसे बड़े होने के बाद भी बहुमत का आंकड़ा जुटा पाने में असफल साबित हुई है। ऐसे में कहा जाने लगा है कि राजनेता वर्तमान में कांग्रेस से दूर भागने लगे हैं। सभी जानते हैं कि राज्य में सरकार बनाने के लिए संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना होता है। कांग्रेस इन संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना भूल गई और सब कुछ भविष्य के छोड़ देना ही कांग्रेस को सत्ता दिलाने से वंचित कर गया। अब कांग्रेस की भूमिका लेकर स्वयं ही सवाल उठने लगे हें कि क्या कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं को यह लगने लगा था कि उनकी सरकार नहीं बन सकती ? अगर यह समझा जाने लगा था फिर वर्तमान में कांग्रेस द्वारा गोवा में राज्यपाल की भूमिका को लोकतंत्र की हत्या कहकर जनता को गुमराह करने का कोई मतलब नहीं है। कहा जा सकता है कि कांग्रेस की वर्तमान राजनीतिक हालात के लिए उसके नेता स्वयं जिम्मेदार माने जा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस द्वारा संसद की कार्यवाही को बाधित करना निश्चित रुप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर कुठाराघात ही माना जाएगा।
देश के राजनीतिक और लोकतांत्रिक इतिहास का अध्ययन किया जाए तो गोवा में दूसरे नम्बर के दल की सत्ता बनना कोई नई बात नहीं है। इससे पूर्व भी देश में ऐसे प्रयोग कई बार हो चुके हैं। इतना ही नहीं इसमें कांग्रेस की भी भूमिका रही है। पहले, दूसरे और तीसरे सबसे बड़े दल की बात छोड़िए देश में तो चौथे नम्बर पर आने वाले राजनीतिक दल को सत्ता पाने का अवसर प्राप्त हो चुका है। इतना ही नहीं देश के कई राज्यों भी ऐसे प्रयोग किए गए हैं। जिसमें सबसे बड़े दल के बाद भी दूसरे और तीसरे दल ने मिलकर सत्ता हथियाने का काम किया। इसे जनमत का नाम दिया जाए तो गोवा में जनमत आज भाजपा के साथ है और वहां के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर ने विश्वासमत जीतकर इसको प्रमाणित भी कर दिया है। यह सब संवैधानिक मर्यादा को ध्यान में रखकर ही किया गया है। वास्तव में सरकार के गठन के लिए राज्यपाल का यह विशेषाधिकार है कि वह पूर्ण बहुमत की संख्या जुटाने वाले दल को राज्य की सत्ता बनाने के लिए आमंत्रित करे। गोवा की राज्यपाल ने भी वही किया है।
जहां तक कांग्रेस द्वारा संसद में हंगामा किए जाने की बात है तो यह पूरी तरह से गलत ही माना जाएगा, क्योंकि कांग्रेस की भूमिका के बारे में देश की न्यायपालिका ने स्पष्ट तौर पर कह दिया था कि जब कांग्रेस के पास संख्या बल है तो उसे राज्यपाल के पास जाना चाहिए। कांग्रेस राज्यपाल के पास नहीं गई, सीधे न्यायालय के पास पहुंच गई। इसके साथ ही सवाल यह आता है कि जब कांग्रेस के पास संख्या बल था तो उसे विश्वासमत के दौरान दिखाना चाहिए, लेकिन कांग्रेस विश्वासमत के दौरान बुरी तरह से पराजित हो गई, इतना ही नहीं कांग्रेस का एक विधायक अपने वरिष्ठ नेताओं की भूमिका पर सवाल उठा चुका है। यह ऐसे सवाल हैं जिससे कांग्रेस पीछा नहीं छुड़ा सकती। सवालों के जवाब तलाशने की बजाय कांग्रेस देश को गुमराह करने की राजनीति करती हुई दिखाई दे रही है।
जहां तक गठबंधन की राजनीतिक की बात है तो देश में कुछ गठबंधन चुनाव से पूर्व होते हैं तो कई राजनीतिक दल चुनाव के बाद गठबंधन की संभावनाओं पर विचार मंथन करते हुए सत्ता प्राप्त करने का उपक्रम करते हैं। दोनों प्रकार के गठबंधन संवैधानिक रुप से सही हैं। दिल्ली के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर दूसरे नम्बर पर आने वाले दल की सत्ता बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था। अगर कांग्रेस वर्तमान में सबसे बड़े दल को सत्ता सौंपने को सही मानती है तो उस समय दिल्ली में केवल भाजपा की सरकार बनती। ऐसा ही प्रयोग उत्तरप्रदेश में उस समय किया गया, जब भाजपा सबसे बड़े दल के रुप में चुनाव जीतकर आई थी। इस समय सपा, बसपा ने मिलकर सरकार बनाई थी। कांग्रेस ने इनका साथ दिया।
देश के पांच राज्यों के चुनाव परिणाम उत्तरप्रदेश में सपा, बसपा व कांग्रेस के लिए एक सबक है तो पंजाब का चुनाव भाजपा के लिए। इन राज्यों में प्रमुख राजनीतिक दलों की दुर्गति होना निश्चित रुप से चिन्ता करने वाली बात है, लेकिन इसके विपरीत लगता है कि कांग्रेस ने इन चुनावों से भी कोई सबक नहीं लिया। कांग्रेस द्वारा जिस प्रकार से विरोध की राजनीतिक की जा रही है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि कांग्रेस का वर्तमान में एक मात्र उद्देश्य केवल विरोध करना ही रह गया है। केवल विरोध के लिए ही विरोध करना लोकतांत्रिक दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को केवल पंजाब में ही संजीवनी मिली है। राजनीतिक विश्लेषणों में इस जीत को कांग्रेस के लोकप्रिय होने का प्रमाण कम, स्थानीय नेतृत्व की सही नीतियों का परिणाम ज्यादा माना जा रहा है।
कहा जाने लगा है कि गोवा में जिस प्रकार की राजनीतिक स्थितियों का प्रादुर्भाव हुआ है। वह कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बहुत बड़ी भूल का परिचायक मानी जा रही है। गोवा के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने चुनाव परिणाम के समय जो खुशी मनाई थी, वरिष्ठ नेताओं ने उस पर पानी फेरने का काम किया है। कांग्रेस के कार्यकर्ता वरिष्ठ नेताओं को गोवा में भाजपा की सरकार बनने के लिए दोषी मान रहे हैं। कार्यकर्ताओं को इस गुस्से को देखते हुए ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने गोवा मामले को लोकतंत्र की हत्या करार दे दिया। इस विरोध के कारण संभवत: कार्यकर्ताओं में यह संदेश तो जाएगा ही कि वरिष्ठ नेताओं ने विरोध तो किया, लेकिन कार्यकर्ताओं के मानस को कौन समझाए।

कांग्रेस की यह जन्मजात शैली मानी जाती है कि उसे अपने अंदर कोई दोष दिखाई नहीं देता। वह यही मानती है कि हम चाहे भ्रष्टाचार करें या तुष्टीकरण, देश हमारा हमेशा समर्थन करे। दूसरी बात यह है कि कांग्रेस वर्तमान में भी अपने आपको शासक मानकर व्यवहार करती दिखाई दे रही है। वह यह समझने का प्रयास भी नहीं कर रही कि आज देश में सरकार बदल गयी है और लोकतांत्रिक दृष्टी से वह विपक्ष का दर्जा भी खो चुकी है। ऐसे में कांग्रेस को दूसरों को दोष देने से पहले स्वयं के गिरेबां में झाँककर देखना चाहिए।

भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि देश को अब कांग्रेस की आवश्यकता नहीं है। इसलिए कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों पर नजर डाली जाए तो यही परिलक्षित होता दिखाई देता है कि देश की जनता ने महात्मा गांधी की बात पर अमल करना प्रारंभ कर दिया है। क्योंकि इन पांच राज्यों में से चार राज्यों में भाजपा की सरकार बन चुकी है या बनने वाली है। वर्तमान में पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के सपने को साकार करने के लिए अपने कदम बढ़ाता हुआ दिखाई दे रहा है।
पांच राज्यों के जो चुनाव परिणाम आए हैं, वह कांग्रेस के लिए फिर से एक सबक है। लेकिन सवाल यह आता है कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के बाद कोई सबक नहीं लिया तो इन चुनावों के बाद वह अपनी हार के कारणों पर आत्म मंथन करेगी, ऐसा कम ही लगता है। लोकसभा चुनावों के बाद हुए राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लगातार सिमटती चली जा रही है। भाजपा को तीन और राज्यो में सत्ता संचालन का अवसर मिला है यानी देश के अधिकतर भाग में भाजपा का राज है।

आज उत्तर भारत के मुस्लिम बाहुल्य राज्य जम्मू कश्मीर में भाजपा समर्थित सरकार है, तो पश्चिम के राज्य गुजरात में भी भाजपा का परचम है। इसी प्रकार पूर्व के असम और अब मणिपुर में भी भाजपा का जलवा हो गया है और दक्षिण के गोवा में भी फिर भाजपा की सरकार विराजमान हो गयी है। इसके अलावा भारत के केंद्र में आने वाले राज्यों में भी भाजपा की सरकारें हैं। इससे यह आसानी से कहा जा सकता है कि देश के चारों कोने जहां भाजपा का प्रभाव है, वहीं कांग्रेस देश के चारों कोनों से विदा हो गई है।

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