नई दिल्ली: भोजपुरी गायक एवं फिल्म कलाकार की छवि और बिहारी बाबू के टैग के बूते भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी पूर्वांचल वोटरों को साधने में कामयाब रहे। दिल्ली में करीब 35 फीसदी जनसंख्या इन्हीं वोटरों की मानी जाती है, जिसे अब तक भाजपा के पक्ष में मोडऩे में पूर्व के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कई अन्य दिग्गजों को असफलता ही हाथ लगी थी।
यहां तक कि विधानसभा चुनाव में भी वोटिंग प्रतिशत बढऩे के बावजूद भाजपा को उन इलाकों में ही निराशा मिली थी, जहां पूर्वांचल वोटरों का दबदबा माना जाता है। ऐसे में भाजपा के पक्ष में पूर्वांचल वोटरों को साधने के अलावा तिवारी की पहचान अब दिल्ली के नेता के तौर पर बन गई है।
निगम चुनाव में भाजपा के साथ ही तिवारी की साख भी दांव पर लगी हुई थी। क्योंकि भाजपा नेतृत्व ने कई वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज कर इन्हें दिल्ली की कमान सौंपी थी। इससे कई नेता नाराज हैैं और अभी भी उनकी नजर दिल्ली की कुर्सी पर लगी हुई है। वहीं, पार्षदबंदी की वजह से भितरघात का खतरा भी था। इस स्थिति में निगम चुनाव में पराजय से उनके विरोधियों को एक मुद्दा मिल जाता। इस बहाने वे तिवारी को हटाकर दिल्ली की कमान अपने हाथ में लेने की कोशिश करते। किंतु अब स्थिति बदल गई है। विरोधी पार्टियों के साथ ही पार्टी के अंदर के विरोधी भी पस्त हो गए हैं।
जानकारी के अनुसार दिल्ली में करीब 33-35 फीसदी मतदाताओं का संबंध पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार से है। अब तक ऐसे मतदाताओं को कांग्रेस का वोटर माना जाता था। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में यह धारणा गलत साबित हुई और झुग्गी बस्ती व पूर्वांचल वोटरों के बूते आम आदमी पार्टी ने बम्पर जीत हासिल की। भाजपा के लिए पूर्वांचल वोटरों की बढ़ती संख्या मुसीबत का सबब पहले से ही बनी रही है,ऐसे में इनका समर्थन न मिलने से समस्या और विकट हो रही थी। इसी बात को ध्यान में रखकर भाजपा ने तिवारी पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी दी और उन्होंने उस भरोसे को यकीन में तब्दील कर दिया।
करीब पांच महीने उन्होंने विभिन्न स्तर पर न केवल पूर्वांचल वोटरों को साधने के प्रयास किये,बल्कि झुग्गी बस्ती में रात्रि प्रवास के जरिये यह संदेश देने में भी कामयाब रहे कि वह उनके साथ हैं। इन बातों के जरिये वह गरीबों और पूर्वांचल के लोगों को अपने साथ जोडऩे की कोशिश में जुटे रहे और अंतत: उसमें कामयाब रहे।