नई दिल्ली। वर्ष 2016 में जब ऑड-इवन योजना लागू होने के दौरान दिल्ली में मौजूद प्रदूषण में 18 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई थी। इसके साथ यातायात में भी राहत मिली थी। सड़कों पर जाम कम लग रहा था और आने-जाने में सहूलियत हुई थी।
इस बार भी अगर यह योजना लागू हो जाती है तो निश्चित तौर पर वाहनों के धुएं से होने वाले प्रदूषण में कमी दर्ज की जाएगी। लेकिन इस योजना को सफल बनाने के लिए दिल्ली सरकार के साथ-साथ दिल्लीवासियों को भी आगे बढ़कर काम करना होगा।
लोगों को कम से कम निजी गाडिय़ों का इस्तेमाल करना होगा, जिससे सड़कों पर वाहनों का रैला न दिखाई दे। योजना सिर्फ सरकार की पहल पर ही सफल नहीं हो सकती। इसकी सफलता के लिए लोगों को भी अपना सहयोग देना होगा। सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का अधिक से अधिक प्रयोग कर राजधानी की आबो-हवा को स्वच्छ बनाने की कोशिश करनी होगी।
मौजूदा समय में दिल्ली में करीब 1 करोड़ 12 लाख से अधिक वाहन हंै। साथ ही दिल्ली की जनसंख्या करीब पौने दो करोड़ है। बता दें कि पिछले साल सर्दी के मौसम में ऑड-इवन को लागू किया गया था। पिछले साल जनवरी में ऑड-इवन लागू रहने के दौरान प्रदूषण में 18 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
यूएस बेस्ड स्टडी द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट यूनिवॢसटी ऑफ चिकागो (ईपीआईसी) और एवीडेंस फॉर पॉलिसी डिजाइन ग्रुप (हरवर्ड यूनिवॢसटी) द्वारा की गई स्टडी के मुताबिक वर्ष 2016 में एक जनवरी से 15 जनवरी के बीच प्रदूषण में 18 प्रतिशत की कर्मी दर्ज की गई थी। पीएम 2.5 में औसत 10 से 13 फीसदी की गिरावट आई थी।
काफी कम हुआ था प्रदूषण: सीएसई
पिछले साल दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से 15 दिन के लिए चलाई गई ऑड-इवन योजना से यहां कारों से होने वाले प्रदूषण में काफी कमी आई थी। पर्यावरण से संबंधित गैर-सरकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वाइरन्मेंट (सीएसई) ने पहली जनवरी से 15 जनवरी तक चली इस योजना के दौरान दिल्ली की आबोहवा की जांच के बाद यह बात कही थी।
सीएसई की वायु प्रदूषण नियंत्रण इकाई के प्रबंधक विवेक चट्टोपाध्याय ने कहा कि ऑड-इवन योजना के दौरान कारों से होनेवाले प्रदूषण में तीस प्रतिशत तक भी कमी आई थी। इसकी वजह यह रही कि सड़कों पर कम कारें उतरीं। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि प्रदूषण के संदर्भ में परिणाम मिला जुला रहा।
सीएसई से जुड़े विवेक ने कहा कि इस योजना के तहत डीजल कारों और एसयूवी पर प्रतिबंध से बड़ा फायदा हुआ जिनका यहां वाहनों से होने वाले प्रदूषण में बड़ा योगदान है। उन्होंने लंदन असेंबली एन्वाइरेन्मेंट कमेटी की ड्राइविंग अवे फ्रॉम डीजल रिड्यूसिंग एयर पोल्यूशन फ्रॉम डीजल व्हीकल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पेट्रोल की तुलना में डीजल से वायु प्रदूषण अधिक होता है।
विवेक ने कहा कि एक डीजल कार पेट्रोल से चलने वाली लगभग 27 कारों के बराबर वायु प्रदूषण फैलाती है। इसलिए जरूरी है कि स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इन प्रदूषणों का उत्सर्जन कम किया जाए।
विवेक ने कहा कि भले ही ऑड-इवन योजना से दिल्ली में वायु प्रदूषण में कमी आई है लेकिन शहर में प्रदूषण और यातायात को कम करने के लिए कई अन्य उपाय तलाशने की जरूरत है।
प्रदूषण के मामले में दिल्ली का नंबर सबसे ऊपर
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में 13 भारत के शहर हंै। इनमें राजधानी दिल्ली सबसे ऊपर है। इसके बाद पटना, रायपुर और ग्वालियर का नंबर आता है। बाकी बचे शहरों में तीन पाकिस्तान के, दो बांग्लादेश के, एक कतर और एक ईरान का शहर है।
अब एक ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर दिल्ली में प्रदूषण की समस्या की ओर ध्यान खींचा है। एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नॉलॉजी पत्रिका में छपी इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में अधिकतर मौतें दिल की बीमारी और स्ट्रोक के कारण होती है। दिल्ली की हवा में पार्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5 की मात्रा प्रति घन मीटर 150 माइक्रोग्राम है।
यह देश में निर्धारित सीमा का चार गुना और डब्ल्यूएचओ की तय सीमा का 15 गुना है। रिपोर्ट के अनुसार पीएम 2.5 पर काबू पाकर दिल्ली में प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों को 45 से 85 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
ट्रकों से प्रदूषण को रोकने की मुहिम
ओवरलोडेड ट्रकों से होने वाले प्रदूषण से भी राजधानी की आबो-हवा खराब हो रही है। इस पर अंकुश लगाने के लिए भी सरकार ने मुहिम शुरू की है। रात्रि 8 बजे से सुबह 4 बजे तक बॉर्डर और अन्य स्थानों पर विशेष अभियान चलाया जा रहा है।
इसके साथ खुले तरीके से भवन निर्माण सामग्री ले जाने वाले ट्रकों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। शनिवार को अभियान के पहले पहले दिन 50 से अधिक ट्रकों को जब्त किया गया।
रोडवेज की बसों से डबल पॉल्यूशन
बाहरी राज्यों से राजधानी के भीतर तीनों आईएसबीटी में आने वाली रोजाना 1800 से अधिक बसों का हाल यह है कि इसमें 70 फीसदी ऐसी बसें हैं जिनके पास पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल (पीयूसी) सर्टिफिकेट होने के बावजूद प्रदूषण मानक से दोगुना से अधिक प्रदूषण फैलाती पकड़ी गई हैं।
पहले दिन बाहरी राज्यों की रोडवेज की 60 बसों में 30 बसें ही प्रदूषण मानक पर खरी उतर सकीं। वहीं दूसरे दिन के अभियान में 60 बसों में 17 बसें ही मानक पर खरी उतर सकीं। 43 बसें दोगुने से अधिक प्रदूषण फैलाती हुईं पकड़ी गईं। अब तक विभिन्न राज्य रोडवेज की 153 बसों की जांच की जा चुकी है।
ऐसी बसों से तीनों आईएसबीटी के आसपास प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ गया है। परिवहन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि शुक्रवार से संबंधित राज्य रोडवेजों को इस संबंध में नोटिस जारी किए जा रहे हैं।