#NationalPressDay: आखिर कब तक भारत में तोड़ी जाएगी पत्रकारों की कलम

आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस है, भारत में पत्रकार को देश का चौथा स्तंभ माना जाता है। पत्रकार सरकार और उसकी जनता के बीच समन्वय पैदा कर उनके बीच की दूरी कम करते है। जनता को सरकार से क्या शिकायतें वो उन तक पहुचानें का सबसे अच्छा माध्यम पत्रकार ही है। लेकिन ना जानें क्यों देश के कुछ अवांछित तत्व पत्रकारों को खत्म करने में लगे है। आय दिन किसी ना किसी पत्रकार को मौत की नींद सुलाया जा रहा है। हाल ही में बेंगलुरु प्रसिद्ध पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मार कर हत्या कर दी गई। पिछले साल उत्तर प्रदेश के सुल्लतानपुर में एक स्थानीय पत्रकार की हत्या कर दी गई थी। सिर्फ इतनी ही घटनाएं नहीं है सूची अभी और भी लंबी है। ये सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।

भारत में मीडियाकर्मी  सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों की सूची में तीसरे स्थान पर था। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में दुनिया में कुल 110 पत्रकार अपना काम करते मारे गए थे, जिनमें से भारत में कुल 9 पत्रकारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इससे पहले 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट की बात करे तो वर्ष 2014 में दुनिया में 100 पत्रकार मारे गए थे। उस वक्त भारत के दो पत्रकारों की जान गई थी।

उस वक्त तक भारत पत्रकारों के लिए खतरनाक नहीं था। तब खतरनाक देशों की सूची में भारत सातवें स्थान पर था। इससे पहले 2013 में ये 11 वो स्थान पर था। वर्ष 2013 में भी भारत पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में सीरिया और इराक के बाद दुनिया का तीसरा सबसे खतरनाक देश माना गया था।

 2016 के शुरुआती चार महीनों में गई पत्रकारों की जान 

अगर 2016 के पहले चार महीनों के आंकड़ों को देखें तो भारत में पत्रकारों की सुरक्षा की स्थिति पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी खराब रही थी। इस साल पाकिस्तान में एक पत्रकार की हत्या की गई। जबकि बांग्लादेश में भी एक संपादक की हत्या कर दी गई। वहीं अफगानिस्तान में एक पत्रकार को आतंकियों ने मार दिया। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के डेरा इस्माइल खान में पत्रकार मोहम्मद उमर की हत्या कर दी गई। अफगानिस्तान में ननगहार रेडियो के मोहम्मद जुबेर की हत्या की गई। आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो पूरी दुनिया में 2016 के चार महीनों में उन्नीस पत्रकार मारे गए

पाकिस्तान में किसी पत्रकार पर हमला होता है तो उसमें इतनी चिंता की कोई बात नहीं है क्योकि वहां की कानूनी-व्यवस्था की स्थिती ठीक नहीं है। लेकिन भारत के लिए ये चिंताजनक है क्योंकि  यहां की कानून वयवस्था उतनी खराब नहीं है। इसके बाद भी यहां पत्रकार अपनी जान ग्वा रहे है।

2017 में गौरी लंकेश की हत्या 

इसी साल सितंबर महीने में वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की बेंगलुरु स्थित उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई। गौरी एक निर्भीक पत्रकार थीं जो राइट विंग विचारों और उनकी पॉलिसीज की कट्टर विरोधी मानी जाती थीं। इससे पहले भी कई पत्रकारों की आवाज दबाई गई है। गौरी लंकेश सत्ता की खामियों पर सवाल उठाने में जरा भी नहीं हिचकती थीं। लेकिन मंगलवार देर शाम गोली मारकर उनकी आवाज को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी पत्रकार को अपनी निडरता की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी हो। गौरी लंकेश की हत्या के बाद 7 सितंबर को बिहार के एक पत्रकार की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।

भ्रष्टाचार कवर करने वाले पत्रकारो की जान को होता है खतरा 

पिछले साल पत्रकारों की सुरक्षा पर निगरानी रखने वाली प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्था सीपीजे द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में भ्रष्टाचार कवर करने वाले पत्रकारों की जान को खतरा हो सकता है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की 42 पन्नों की इस विशेष रिपोर्ट में कहा गया था है कि भारत में रिपोर्टरों को काम के दौरान पूरी सुरक्षा अभी भी नहीं मिल पाती है।

इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 1992 के बाद से भारत में 27 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं, जब पत्रकारों का उनके काम के सिलसिले में हत्या कर दी गई। लेकिन किसी एक भी मामले में आरोपियों को सजा नहीं हो सकी है।

छोटे शहरो का पत्रकार होता है निशाना 

अब सवाल यह उठता है कि भारत में पत्रकार, खास तौर पर छोटे शहरों का पत्रकार, अपराधियों के निशाने पर क्यों रहता है? छोटे शहरों में काम कर रहे पत्रकारों की रिपोर्टिंग अधिकतर स्थानीय स्तर के भ्रष्टाचार, ग्राम पंचायत के फैसलों, जन सुनवाई में अधिकारी की अनुपस्थिति, ग्राम सभा की गतिविधियों, सड़कों की बदहाली, बिजली की समस्या, स्थानीय अधिकारियों, विधायकों के कारनामों और स्थानीय आपराधिक मामलों आदि पर केंद्रित रहती है। अक्सर यह देखा गया है कि इनकी ख़बरों से बड़े खुलासे होने की संभावनाएं होती हैं। लिहाज़ा राष्ट्रीय स्तर पर पहचान न होने के कारण कई बार ऐसे पत्रकार अपनी खबरों की वजह से स्थानीय स्तर पर काम कर रहे माफियाओं और अपराधियों का निशाना बन जाते हैं। यहां तक कि पुलिस प्रशासन भी उन्हें झूठे मुक़दमों में फंसा देती है।

प्रेस की आज़ादी, भारत का संविधान द्वारा हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है। सत्ता और विपक्ष में बैठे सभी राजनीतिक दल संविधान द्वारा दिए गए इस अधिकार की दुहाई देते हुए अक्सर नज़र आते हैं। लेकिन जब तक देश का पत्रकार खतरे में रहेगा तब तक देशवासी पूरी तरह से अभिव्यक्ति की आजादी का प्रयोग नहीं कर सकते है। ऐसे में सरकार को पत्रकारों के लिए सुरक्षा के लिए गंभीरता से विचार करना होगा। अगर सरकार ने समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए तो कई और पत्रकारों की भी जान पर बन आएगी।

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