नई दिल्ली। समकालीन साहित्य के चर्चित साहित्यकार सुधाकर पाठक की पुस्तक ‘जिंदगी कुछ
यूँ ही’ पर केन्द्रित परिचर्चा का आयोजन दिल्ली पुस्तक मेले में युवा
उत्कर्ष साहित्यिक मंच के तत्वावधान में सम्पन्न हुआ साथ ही साहित्यकार
राम किशोर उपाध्याय के काव्य संग्रह ‘ड्राइंग रूम के कोने’ पर चर्चा की
गयी। विषय प्रवर्तन करते हुए सुधाकर पाठक ने कहा कि जिन्दगी में हम ‘सब
कुछ’ प्राप्त कर लेना चाहते हैं किन्तु ‘सब’ प्राप्त करने के चक्कर में
‘कुछ’ छूट जाता है। सारी उमर हम उसी ‘कुछ’ की तलाश में रहते हैं और
‘जिन्दगी कुछ यूँ ही ‘ गुजर जाती है। ‘जिन्दगी कुछ यूँ ही’ पुस्तक
परिचर्चा के दौरान लब्ध प्रतिष्ठ कवियित्री डॉ. सीता सागर ने कहा कि
कविता वही जो सौन्दर्य, शिल्प, बिम्ब, समकालीन कथ्य, भाव व व्याकरण को
अपने अंतस में समेटे संजोये हो। एक तटस्थ समीक्षक की हैसियत से उन्होंने
सुधाकर पाठक कि पुस्तक की निर्मम विश्लेषण किया है और पाया है कि पुस्तक
अपने शीर्षक को सार्थक करने में हद तक सफल रही है ..खासतौर से ‘कोल्हू का
बैल’ कविता में कवि द्वारा जो नोस्टेल्जिया के भाव उकेरे गए हैं उनसे
पढने वाला स्वयमेव जुड़ जाता है यही रचनाधर्मिता की सार्थकता है। देश के
वरिष्ठ साहित्यकार एवं आकाशवाणी के पूर्व महानिदेशक डॉ. लक्ष्मीशंकर
वाजपेयी ने जिन्दगी कुछ यूँ पर अपने विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि
वह इस पुस्तक को तीन बार पढ़ चुके हैं और पाठन के दौरान प्रत्येक बार वह
पुस्तक के नवीन अर्थ भाव से परिचित हुए। उन्होंने आज परिचर्चा के दिन को
उत्सव के रूप में लिए जाने की बात कही।
पुस्तक परिचर्चा में प्रो. विश्वम्भर शुक्ल, रंजीता सिंह, त्रिभुवन कौल,
मीरा शलभ, रतिनाथ योगेश्वर ने अपने विचार व्यक्त किये । इस दौरान देश के
विभिन्न हिस्सों से आए हुए अकेला इलाहाबादी, हामिद खान, केदारनाथ, सागर
समीप, मंजू वशिष्ठ, भावना गोयल, चन्द्रकान्ता सिवाल, दीपक प्रियांश,
श्वेताभ पाठक, ओम प्रकाश मंडल, संस्कृति मिश्र, अरविन्द योगी, विजय कुमार
राय, शैलजा पाठक, भूपिंदर सेठी समेत सैकड़ों गणमान्य साहित्यकारो की
भागेदारी रही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी एवं संचालन डॉ. किरण
मिश्रा व डॉ. पवन विजय ने किया। युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के अध्यक्ष
राम किशोर उपाध्याय ने आए हुए समस्त अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया।