अक्षय तृतीया (आखातीज) को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है। जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि अक्षय तृतीया की यह तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है। कहते हैं कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भी विशेष अनुष्ठान होता है जिससे अक्षय पुण्य मिलता है। इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इस दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। समस्त शुभ कार्यों के अलावा प्रमुख रूप से शादी, स्वर्ण खरीदने, नया सामान, गृह प्रवेश, पदभार ग्रहण, वाहन क्रय, भूमि पूजन तथा नया व्यापार प्रारंभ कर सकते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं। जो मनुष्य अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है। -इस दिन परशुरामजी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। -शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है। कैसे करें अक्षय तृतीया व्रत… वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। चूंकि इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महा फलदायक माना जाता है। यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। यह व्रत दान प्रधान है। इस दिन अधिकाधिक दान देने का बड़ा माहात्म्य है। इसी दिन से सतयुग का आरंभ होता है इसलिए इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं। -व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें। -घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर पवित्र या शुद्ध जल से स्नान करें। -घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। निम्न मंत्र से संकल्प करें:- ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये। -संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। -षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें। -भगवान विष्णु को सुगंधित पुष्पमाला पहनाएं। -नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें। -अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें। -अंत में तुलसी जल चढ़ा कर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए। -इस दिन उपवास रखें।
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